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रविवार, 10 अक्तूबर 2010

poem-antar

चिलचिलाती धूप भी
कितनी शीतल लगती है
जब एयर- कंडिशनर कमरे
की बंद खिड़की के शीशे से
बाहर देखो.
जनवरी की रात भी
कितनी गरम लगती है
जब कमरों में हीटर
लगाकर लिहाफ में
let जाओ गद्दों
के पलंग par.antar

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