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शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

happy new year -2011

खुशियों की माला लेकर ;
नववर्ष खड़ा तेरे द्वारे ;
इस नए वर्ष में जो देखो ;
वे सपने सच्चे हो सारे .
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तुम स्वस्थ रहो ;बलवान बनो;
धनवान बनो ;विद्वान बनो;
इस वर्ष में नित दिन सेवा कर ;
आज्ञाकारी संतान बनो ;
मन में नव  पुण्य  जाग्रत  हो  ;
पाप सभी मन के हारें  ;
इस नए वर्ष में जो देखो ;
वे सपने सच्चे हो सारे .
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घर -आँगन  जगमग-जगमग हो ;
नित मंगलकारी साज बजें ;
आपस में प्रेमभाव पनपे;
बैर क़ा पेड़ कटे जड़ से ;
धरती पर पैर जमाकर  तुम ;
छू आओ नभ के सब तारे .
इस नए वर्ष में जो देखो
वे सपने सब सच्चे हो सारे .

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

एक माँ की अभिलाषा

ओ मेरे मासूम बेटे ! आग नफरत की बुझाना ,
गीत जो गाये अमन के ;उसके सुर में सुर मिलाना . 
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आपसी सदभाव के पौधे  की क्यारी सीचना ,
बैर की फैली हुई घास जड़ से खीचना ;
तू गिराना दुश्मनी की हर खड़ी दीवार को ;
खुद को ऊँचा मानकर हरगिज कभी न रीझना ;
धर्म  जो पूछे कोई  ,इंसान हूँ इतना बताना .
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धर्म-जाति-आग में घर बहुत हैं जल चुके ,
गोद है उजड़  चुकी ,बहुत सुहाग लुट चुके,
लूट मार क़त्ल के इस दौर को तू रोकना,
आपसी विद्वेष के खंजरों को तोडना ,
है अगर तू खून मेरा, मेरा कहा करके दिखाना,
ओ!मेरे मासूम बेटे!आग नफरत की बुझाना.

रविवार, 19 दिसंबर 2010

आपकी ही दोस्त हूँ !

मुस्कुराने को कहूँ तो मुस्कुरा भी दीजिये ;
हाल जो पूछूं तुम्हारा ;गम सुना भी दीजिये ,
मैं नहीं उनमें से कोई ;
आये और आकर चल दिए ,
मैं जो आऊं घर तुम्हारे 
ठहराने  की जहमत कीजिये .
मैं नहीं पीती हूँ साकी ;
ये तुम्हे मालूम है ;
तो मुझे चाय क़ा प्याला  ;
शक्कर मिला कर दीजिये .
सोचते तो होगे तुम ;
कैसी ये बेशर्म है ?
रोज आ जाती है
अफ़साने सुनाने के लिए ;
''दोस्त आपकी ही हूँ ''
ये सोच कर सह लीजिये .
मुस्कुराने को कहूँ तो
मुस्कुरा भी दीजिये .

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

हर तरफ आवाज ये उठने लगी है ...

''सौप कर जिनपर हिफाजत मुल्क की ;
ले रहे थे साँस राहत की सभी ;
चलते थे जिनके कहे नक़्शे कदम पर ;
जिनका कहा हर लफ्ज तारीख था कभी ;
वो सियासत ही हमे ठगने   लगी है ;
हर तरफ आवाज ये उठने लगी है .
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है नहीं अब शौक खिदमत क़ा किसी को ;
हर कोई खिदमात क़ा आदी हुआ है  ;
लूटकर आवाम क़ा चैन- ओ  -अमन ;
वो बन गए आज जिन्दा बददुआ हैं ;
वो ही कातिल ,वो ही हमदर्द ,ये कैसी दिल्लगी है ;
हर तरफ आवाज ये उठने लगी .
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कभी जो नजर उठते ही झुका देते थे;
हर एक बहन के लिए खून बहा देते थे ;
कोई फब्ती भी अगर कसता था ;
जहन्नुम  उसको  दिखा  देते थे ;
खुले बाजार पर अब अस्मतें लुटने लगी हैं ;
हर तरफ आवाज ये उठने लगी है .

बुधवार, 15 दिसंबर 2010

क्रांति स्वर में ललकारें

छोड़ विवशता वचनों को 
व्यवस्था -धार पलट डालें ; 
समर्पण की भाषा को तज
क्रांति स्वर में ललकारें .
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छीनकर जो तेरा हिस्सा
बाँट देते है ''''अपनों '''' में
लूटकर सुख तेरा सारा
लगाते  सेंध  ''सपनों'' में ;
तोड़ कर मौन अब अपना
उन्हें जी भर के धिक्कारें .
समर्पण की भाषा को तज
क्रांति स्वर में ललकारें .
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हमी से मांगकर वोटें
जो सत्तासीन हो जाते ;
भूलकर के   सारे वादे
वो खुद में लीन हो जाते ,
चलो मिलकर   गिरा दें
आज सत्ता-मद की दीवारें .
समर्पण की भाषा को तज
क्रांति स्वर में ललकारें .
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डालकर धर्म -दरारें
गले मिलते हैं सब नेता ;
कुटिल चालें हैं कलियुग की
ये न सतयुग, न है त्रेता ,
जगाकर आत्म  शक्ति को
चलो अब मात दे डालें .
समर्पण की भाषा को तज
क्रांति     स्वर में ललकारें.
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रविवार, 12 दिसंबर 2010

piya-preysi

प्रेम क़ा रूप ऐसा भी होता है ;
मेरी कल्पना क़ा ही ये एक झरोखा है ,
इसमें पिया और प्रेयसी क़ा मिलन है ;
जिससे प्रफुल्लित होता अंतर्मन है ,
कौन है पिया और कैसी है प्रेयसी ?
''सावन जैसा पिया '' ''बरखा जैसी प्रेयसी''
देखती हूँ तो देखती रह जाती हूँ ;
सावन उठाता है बरखा के मुख से
श्यामल मेघों क़ा घूघंट ;
और बरखा -लजाकर ,सकुचाकर
हो जाती है -पानी-पानी-पानी.

रविवार, 5 दिसंबर 2010

khel

जन्म के ही साथ मृत्यु  जोड़  देता है ;
हे प्रभु ! ये खेल कैसे खेल लेता है ?
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माता -पिता की आँखों क़ा जो है उजाला ;
अंधे की लाठी और घर क़ा जो सहारा ;
ऐसे ''श्रवण '' को भी निर्मम छीन लेता है.
हे प्रभु !ये खेल कैसे खेल लेता है ?
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हाथ में मेहदी रचाकर ,ख्वाब खुशियों के सजाकर ,
जो चली फूलों पे हँसकर ,मांग में सिन्दूर भरकर ,
ऐसी सुहागन क़ा सुहाग छीन लेता है .
हे प्रभु ! ये खेल कैसे खेल लेता है ?
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जन्म देते ही सदा को सो गयी ,
चूम भी न पाई अपने लाल को ,
नौ महीने गर्भ में रखा जिसे ,
देख भी न पाई एक क्षण उसे ,
दुधमुहे बालक की जननी छीन लेता है .
हे प्रभु ! ये खेल कैसे खेल लेता है ?
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बांहों क़ा झूला झुलाता ,घोडा बनकर जो घुमाता ,
दुनिया क्या है ? ये बताता ,गोद में हँसकर उठाता ,
ऐसे पिता क़ा साया सिर से छीन लेता है .
हे प्रभु ये खेल कैसे खेल लेता है ?
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याद में आंसू बहाता ,राह में पलके बिछाता ,
हाथ में ले हाथ चलता ,तारे तोड़ कर वो लाता   ,
ऐसे प्रिय  को क्यूँ प्रिया से छीन लेता है .
हे प्रभु ये खेल कैसे खेल लेता है ?
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छोड़कर सुख के महल जो दुःख के बन में साथ थी ,
जिसके ह्रदय में हर समय श्री  राम नाम प्यास थी ,
ऐसी सिया को राम से क्यूँ  छीन लेता है ?
हे प्रभु ये खेल कैसे खेल लेता है ?
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शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

sadak

मैं सड़क हूँ ,मैं गवाह हूँ
आपके गम और ख़ुशी की ,
है नहीं कोई सगा पर
मैं सगी हूँ हर किसी की .
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मुझपे बिखरे रंग होली के ये देखो ;
मुझपे बिखरा खून ये दंगों क़ा देखो ;
मुझपे होकर जा रही बारात देखो ;
मुझपे ले जाते हुए ये अर्थी देखो ;
मैं गवाह आंसू की हूँ और कहकहों की ,
मैं सड़क हूँ ,मैं गवाह हूँ 
आपके गम और ख़ुशी की .
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मंदिरों तक जा रहे मुझपे ही चलकर ;
मस्जिदों तक जा रहे मुझपे ही चलकर ;
मैं गरीबों को सुलाती थपकी देकर ;
मैं अमीरों को निभाती ठोकर सहकर ;
एक ही कीमत लगाती हूँ मैं हर इंसान की ,
मैं सड़क हूँ ;मैं गवाह हूँ आपके गम और ख़ुशी की .
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बुधवार, 1 दिसंबर 2010

bas itna jaan le ..

सपने न देख सतरंगी
ए मेरे दोस्त !
इस दुनिया  क़ा रंग काला है
बस इतना जान ले !
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ह्रदय की भव्यता क़ा
कोई मोल  नहीं ;
पैसे क़ा बोलबाला है ;

बस इतना जान ले !
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न मांग कुछ भी
भिखारी बनकर ;
गुंडों क़ा बोलबाला है ,
बस इतना जान ले !
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