प्रेम क़ा रूप ऐसा भी होता है ;
मेरी कल्पना क़ा ही ये एक झरोखा है ,
इसमें पिया और प्रेयसी क़ा मिलन है ;
जिससे प्रफुल्लित होता अंतर्मन है ,
कौन है पिया और कैसी है प्रेयसी ?
''सावन जैसा पिया '' ''बरखा जैसी प्रेयसी''
देखती हूँ तो देखती रह जाती हूँ ;
सावन उठाता है बरखा के मुख से
श्यामल मेघों क़ा घूघंट ;
और बरखा -लजाकर ,सकुचाकर
हो जाती है -पानी-पानी-पानी.
8 टिप्पणियां:
वाह !शिखा जी बहुत खूब लिखा आपने.
बहुत सुन्दर बिम्ब प्रयोग के साथ सुन्दर रचना।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (13/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
bahut achchhi rachnatmak prastuti.kalpna kshamta lajawab....
Sunder premmayi rachna....
प्रेम की साहित्यक अभिव्यक्ति
aap sabhi ka bahut bahut shukriya .
sundar abhivyakti!
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