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रविवार, 12 दिसंबर 2010

piya-preysi

प्रेम क़ा रूप ऐसा भी होता है ;
मेरी कल्पना क़ा ही ये एक झरोखा है ,
इसमें पिया और प्रेयसी क़ा मिलन है ;
जिससे प्रफुल्लित होता अंतर्मन है ,
कौन है पिया और कैसी है प्रेयसी ?
''सावन जैसा पिया '' ''बरखा जैसी प्रेयसी''
देखती हूँ तो देखती रह जाती हूँ ;
सावन उठाता है बरखा के मुख से
श्यामल मेघों क़ा घूघंट ;
और बरखा -लजाकर ,सकुचाकर
हो जाती है -पानी-पानी-पानी.

8 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

वाह !शिखा जी बहुत खूब लिखा आपने.

vandana gupta ने कहा…

बहुत सुन्दर बिम्ब प्रयोग के साथ सुन्दर रचना।

vandana gupta ने कहा…

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (13/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com

Shalini kaushik ने कहा…

bahut achchhi rachnatmak prastuti.kalpna kshamta lajawab....

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

Sunder premmayi rachna....

Kunwar Kusumesh ने कहा…

प्रेम की साहित्यक अभिव्यक्ति

Shikha Kaushik ने कहा…

aap sabhi ka bahut bahut shukriya .

अनुपमा पाठक ने कहा…

sundar abhivyakti!