फ़ॉलोअर

गुरुवार, 29 नवंबर 2012

एक चूक जाती है जिंदगी निगल

India No 1 in road accident deaths

India No 1 in road accident deaths



 

 एक चूक जाती है जिंदगी निगल
ध्यान से तू चल भैया  ध्यान से तू चल !

 हो  सवारी पर या  हो  पैदल
ध्यान से तू चल भैया ध्यान से तू चल !

 

 पीकर शराब कभी वाहन न चलाना ,
तय रफ़्तार से तेज न भगाना ,
सीट बैल्ट बांधकर चलाना तू कार ,
हैलमेट पहन कर हो बाइक पर सवार ,
अब तक ना संभला तो अब तो संभल  !
ध्यान से तू चल भैया ध्यान से तू चल !

 

 पैदल चलने वाले जरा हो जा होशियार ,
लाल बत्ती पर कर सड़क को पार ,
हैड फोन लगाकर सड़क पर ना चलना
रेल की पटरी को खेल ना समझना ,
मोबाइल साइलेंट कर के निकल !
ध्यान से तू चल भैया ध्यान से तू चल !

 

 शिखा कौशिक 'नूतन ''

 

 

 


मंगलवार, 27 नवंबर 2012

है औरत बस फबन मर्द के घर की 'नूतन'



Muslim_man : Muslim Arabic couple inside the modern mosque Stock Photostock photo : Young brunette beauty or bride, behind a white veil
मर्द बोला हर एक फन मर्द में ही होता है ,
औरत के पास तो सिर्फ  बदन   होता है .



 फ़िज़ूल   बातों  में वक़्त  ये  करती  ज्जाया   ,
मर्द की बात   में कितना   वजन   होता है !



 हम हैं मालिक हमारा दर्ज़ा है उससे  ऊँचा ,
मगर द्गैल को ये कब सहन होता है ?


 रहो नकाब में तुम आबरू हमारी हो ,
बेपर्दगी से बेहतर तो कफ़न होता है .


 है औरत बस फबन मर्द के घर की 'नूतन'
राज़ औरत के साथ ये भी दफ़न होता है .

शिखा कौशिक 'नूतन'

[द्गैल -धोखेबाज़ ,      फबन-सज सज्जा ]



गुरुवार, 22 नवंबर 2012

शौहर की मैं गुलाम हूँ बहुत खूब बहुत खूब

 stock photo : Portrait of a cute young woman  Saudi Arabianstock photo : Beautiful brunette portrait with traditionl costume. Indian style

शौहर की मैं गुलाम हूँ  बहुत खूब बहुत खूब ,
दोयम दर्जे की इन्सान हूँ  बहुत खूब बहुत खूब .


कर  सकूं उनसे बहस बीवी को इतना हक कहाँ !
रखती बंद जुबान हूँ  बहुत खूब बहुत खूब !


उनकी नज़र में है यही औकात इस नाचीज़ की ,
तफरीह का मैं सामान हूँ  बहुत खूब बहुत खूब !


रखा छिपाकर दुनिया से मेरी हिफाज़त की सदा ,
मानती अहसान हूँ   बहुत खूब बहुत खूब !


वे पीटकर पुचकारते कितने रहमदिल मर्द हैं !
उन पर ही मैं कुर्बान हूँ  बहुत खूब बहुत खूब !


'नूतन' ज़माने में नहीं औरत की कीमत रत्ती भर ,
देखकर हैरान हूँ  बहुत खूब बहुत खूब !


                                              शिखा कौशिक 'नूतन'

मेरी बेटी ने लिया जन्म

एक बेटी को जन्म देने वाली माता के भावों को इस रचना के माध्यम से प्रकट करने का प्रयास किया है -
Photo
from facebook

मेरी बेटी ने लिया जन्म ; मैं समझ पायी ,
सारी  जन्नत  ही मेरी गोद में सिमट आई .

उसने जब टकटकी लगाकर मुझे देख लिया ,
ख़ुशी इतनी मिली कि दिल में न समां पाई  .

 मखमली हाथों से छुआ चेहरा मेरा ,
मेरे तन में लहर रोमांच की सिहर आई .


 मुझे 'माँ' बनने की ख़ुशी दी मेरी बेटी ने ,
'जिए सौ साल ' मेरे लबो पर ये दुआ आई .



 मुझे फख्र है मैंने जन्म दिया बेटी को ,
आज मैं क़र्ज़ अपनी माँ का हूँ चुका पाई .

                               शिखा कौशिक 'नूतन'


बुधवार, 21 नवंबर 2012

अपमानों के अंधड़ झेले ; छल तूफानों से टकराए


 
अपमानों के अंधड़ झेले ;
छल तूफानों से टकराए ,
कंटक पथ पर चले नग्न पग
तब हासिल हम कुछ कर पाए !


आरोपों  की कड़ी धूप में
खड़े रहे हम नंगे सिर ,
लगी झुलसने आस त्वचा थी
किंचित न पर हम घबराये !


व्यंग्य-छुरी दिल को चुभती थी ;
चुप रहकर सह जाते थे ,
रो लेते थे सबसे छिपकर ;
सच्ची बात तुम्हे बतलाएं !


कई चेहरों से हटे मखौटे ;
मुश्किल वक्त में साथ जो छोड़ा ,
नए मिले कई हमें हितैषी
जो जीवन में खुशियाँ लाये !


 धीरज बिन नहीं कुछ भी संभव ;
यही सबक हमने है सीखा ;
जिन वृक्षों ने पतझड़ झेला
नव कोंपल उन पर ही आये !
                                        शिखा कौशिक 'नूतन'

[ मेरी शोध यात्रा के पड़ावों को इस भावाभिव्यक्ति के माध्यम से उकेरने का एक सच्चा प्रयास मात्र है ये ]





मंगलवार, 20 नवंबर 2012

मात गंगे हमें क्षमा करो !


युग युग से हम सभी के पापों को धोती माता गंगा आज स्वयं प्रदूषण  के गंभीर संकट से जूझ  रही हैं .हम कितनी कृतघ्न संतान हैं ?हमने माता को ही मैला कर डाला .हे माता हमें क्षमा करें -

 

मात गंगे हमें क्षमा करो !
संतान हैं कृतघ्न  हम !

हमने किया मैला तुम्हे
दण्डित करो हमें सर्वप्रथम !


 तुम ब्रह्मलोक  से आई तुमने जन जन संताप हरे ,
हे पतित पावनी तुमने हम सबके पाप हरे ,
और हमने कर डाला दूषित तेरा ही जल !


 तेरे अमृत जल से हरियाई भूमि ,
संत लगाते तेरे तट पर नित दिन धूनी ,
हे कल्याणी बदले में कर डाला हमने छल !


 मंदमति संतान हैं हम ;माँ सद्बुद्धि  दो ,
करें शीघ्र प्रयास जल की शुद्धि हो ,
मल व् मैल से मुक्त जल हो जाये निर्मल !  


मात गंगे हमें क्षमा करो !
संतान हैं कृतघ्न  हम !

हमने किया मैला तुम्हे
दण्डित करो हमें सर्वप्रथम !








                                                                       सन्दर्भ
                                               

 [साभार -http://hi.wikipedia.org/s/1y4f ]
एक अनुमान के अनुसार हिंदुओं द्वारा पवित्र मानी जाने वाली नदी में बीस लाख लोग रोजाना धार्मिक स्नान करते हैं। हिन्दू धर्म में कहा जाता है कि यह नदी भगवान विष्णु के कमल चरणों से (वैष्णवों की मान्यता) अथवा शिव की जटाओं से (शैवों की मान्यता) बहती है. इस नदी के आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व की तुलना प्राचीन मिस्र वासियों के लिए नील नदी के महत्त्व से की जा सकती है. जबकि गंगा को पवित्र माना जाता है, वहीं पारिस्थितिकी तंत्र से संबंधित इसकी कुछ समस्याएं भी हैं। यह रासायनिक कचरे, नाली के पानी और मानव व पशुओं की लाशों के अवशेषों से भरी हुई है, और गंदे पानी में सीधे नहाने से (उदाहरण के लिए बिल्हारज़ियासिस संक्रमण) अथवा इसका जल पीने से (फेकल-मौखिक मार्ग से) स्वास्थ्य संबंधी बड़े खतरे हैं।
लोगों की बड़ी आबादी के नदी में स्नान करने तथा जीवाणुभोजियों के संयोजन ने प्रत्यक्ष रूप से एक आत्म शुद्धिकरण का प्रभाव उत्पन्न किया है, जिसमें पेचिश और हैजा जैसे रोगों के जलप्रसारित जीवाणु मारे जाते हैं और बड़े पैमाने पर महामारी फैलने से बच जाती है. नदी में जल में घुली हुई ऑक्सीजन को प्रतिधारण करने की असामान्य क्षमता है.[1


प्रदूषण

1981 में अध्ययनों से पता चला कि वाराणसी से ऊर्ध्वाधर प्रवाह में, नदी के साथ-साथ प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक में जैवरासायनिक ऑक्सीजन की मांग तथा मल कोलिफोर्म गणना कम थी. पटना में गंगा के दाहिने तट से लिए गए नमूनों के 1983 में किए गए अध्ययन पुष्टि करते हैं कि एशरिकिआ कोली (escherichia coli) (ई. कोलि (E.Coli)), फीकल स्ट्रेप्टोकोकाई (Fecal streptococci) और विब्रियो कोलेरी (vibrio cholerae) जीव सोन तथा गंडक नदियों, उसी क्षेत्र में खुदे हुए कुओं और नलकूपों से लिेए गए पानी की अपेक्षा गंगा के पानी में दो से तीन गुना तेजी से मर जाते हैं.[2]
तथापि हाल ही में[कब?] इस की पहचान दुनिया की सबसे अधिक प्रदूषित नदियों में से एक के रूप में की गई है. यूईसीपीसीबी (UECPCB) अध्ययन के अनुसार, जबकि पानी में मौजूद कोलिफोर्म (coliform) का स्तर पीने के प्रयोजन के लिए 50 से नीचे, नहाने के लिए 500 से नीचे तथा कृषि उपयोग के लिए 5000 से कम होना चाहिए- हरिद्वार में गंगा में कोलिफोर्म का वर्तमान स्तर 5500 पहुंच चुका है।
कोलिफोर्म (coliform), घुलित ऑक्सीजन और जैव रासायनिक ऑक्सीजन के स्तर के आधार पर, अध्ययन ने पानी को ए, बी, सी और डी श्रेणियों में विभाजित किया है. जबकि श्रेणी ए पीने के लिए, बी नहाने के लिए, सी कृषि के लिए और डी अत्यधिक प्रदूषण स्तर के लिए उपयुक्त माना गया.
चूंकि हरिद्वार में गंगा जल में 5000 से अधिक कोलिफोर्म (coliform) है और यहां तक कि जल में घुली हुई ऑक्सीजन और जैव रासायनिक ऑक्सीजन का स्तर निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं है, इसे श्रेणी डी में रखा गया है.
अध्ययन के अनुसार, गंगा में कोलिफोर्म (coliform) के उच्च स्तर का मुख्य कारण इसके गौमुख में शुरुआती बिंदु से इसके ऋषिकेश के माध्यम से हरिद्वार पहुँचने तक मानव मल, मूत्र और मलजल का नदी में सीधा निपटान है.
हरिद्वार तक इसके मार्ग में पड़ने वाले लगभग 12 नगरपालिका कस्बों के नालों से लगभग आठ करोड़ नब्बे लाख लिटर मलजल प्रतिदिन गंगा में गिरता है. नदी में गिरने वाले मलजल की मात्रा तब अधिक बढ़ जाती है जब मई और अक्तूबर के बीच लगभग 15 लाख(1.5 मिलियन) लोग चारधाम यात्रा पर प्रति वर्ष राज्य में आते हैं।
मलजल निपटान के अतिरिक्त, भस्मक के अभाव में हरिद्वार में अधजले मानव शरीर तथा श्रीनगर के बेस अस्पताल से हानिकारक चिकित्सकीय अपशिष्ट भी गंगा के प्रदूषण के स्तर में योगदान दे रहे हैं।
इस का परिणाम यह है कि भारत के सबसे मूल्यवान संसाधनों में से एक की क्रमिक हत्या को रही है. गंगा की मुख्य सहायक नदी, यमुना नदी का एक खंड कम से कम एक दशक तक जलीय जीव विहीन रहा है।
भारत के सबसे पावन नगर वाराणसी में कोलिफोर्म (coliform) जीवाणु गणना संयुक्त राष्ट्र विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा स्थापित सुरक्षित मानक से कम से कम 3000 गुना अधिक है. कोलिफोर्म (coliform) छड़ के आकार के जीवाणु हैं जो सामान्य रूप से मानव और पशुओं की आंतों में पाए जाते हैं और भोजन या जलापूर्ति में पाए जाने पर एक गंभीर संदूषक बन जाते हैं।

पर्यावरण जीवविज्ञान प्रयोगशाला, प्राणीविज्ञान विभाग, पटना विश्वविद्यालय द्वारा एक अध्ययन में वाराणसी शहर में गंगा नदी में पारे की उपस्थिति देखी गई. अध्ययन के अनुसार, नदी के पानी में पारे की वार्षिक सघनता 0.00023 पीपीएम थी. सघनता की सीमा एनटी (NT) (नहीं पाया गया) से 0.00191 पीपीएम तक थी।
1986-1992 के दौरान भारतीय विषाक्तता अनुसंधान केंद्र (ITRC), लखनऊ द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला कि ऋषिकेश, इलाहाबाद जिला और दक्षिणेश्वर में गंगा नदी के जल में पारे की वार्षिक सघनता क्रमशः 0.081, 0.043, तथा 0.012 और पीपीबी (ppb) थी।
वाराणसी में गंगा नदी, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पीने के पानी के लिए निर्धारित अधिकतम अनुमेय स्तर 0.001 पीपीएम से कम ही था।[3]
दिसंबर 2009 में, गंगा की सफाई के लिए विश्व बैंक £ 6000 लाख ($1 अरब) उधार देने पर सहमत हुआ था.यह धन भारत सरकार की 2020 तक गंगा में अनुपचारित अपशिष्ट के निर्वहन का अंत करने की पहल का हिस्सा है. इससे पहले 1989 तक इसके पानी को पीने योग्य बनाने सहित, नदी को साफ करने के प्रयास विफल रहे थे

गंगा कार्य योजना

नदी में प्रदूषण भार को कम करने के लिए 1985 में श्री राजीव गांधी द्वारा गंगा कार्य योजना या गैप (GAP) का शुभारंभ किया गया था. कार्यक्रम खूब धूमधाम के साथ शुरू किया गया था, लेकिन यह 15 वर्ष की अवधि में 901.71 करोड़ (लगभग 1010) रुपये व्यय करने के बाद नदी में प्रदूषण का स्तर कम करने में विफल रहा. http://www.cag.gov.in/reports/scientific/2000_book2/gangaactionplan.htm[5]
1985 में शुरू किए गए जीएपी चरण 1 की गतिविधियों को 31 मार्च 2000 को बंद घोषित कर दिया गया. राष्ट्रीय नदी संरक्षण प्राधिकरण की परिचालन समिति ने गैप (GAP) की प्रगति और गैप (GAP) चरण 1 से से सीखे गए सबकों तथा प्राप्त अनुभवों के आधार पर आवश्यक सुधारों की समीक्षा की; इस योजना के अंतर्गत 2.00 योजनाएं पूरी हो चुकी हैं. दस लाख लीटर मलजल को रोकने, हटाने और उपचारित करने का लक्ष्य है।

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

आ ज मुंह खोलूंगी

'मुझे ऐसे न खामोश करें '

आ ज मुंह खोलूंगी मुझे ऐसे न खामोश करें ,
मैं भी इन्सान हूँ मुझे ऐसे न खामोश करें !

तेरे हर जुल्म को रखा है छिपाकर दिल में ,
फट न जाये ये दिल कुछ तो आप होश करें !

मुझे बहलायें नहीं गजरे और कजरे से ,
रूमानी बातों से न यूँ मुझे मदहोश करें !

मेरी हर इल्तिजा आपको फ़िज़ूल लगी ,
है गुज़ारिश कि आज इनकी तरफ गोश करें !

मेरे वज़ूद  पर ऊँगली न उठाओ 'नूतन' ,
खून का कतरा -कतरा यूँ न मेरा नोश करें  !                            

शिखा कौशिक 'नूतन'

बुधवार, 7 नवंबर 2012

'' हुज़ूर इस नाचीज़ की गुस्ताखी माफ़ हो ''

'' हुज़ूर इस नाचीज़  की गुस्ताखी माफ़ हो ''




हुज़ूर इस नाचीज़  की गुस्ताखी माफ़ हो ,
 आज मुंह खोलूँगी हर गुस्ताखी माफ़ हो !


दूँगी सबूत आपको पाकीज़गी का मैं ,
पर पहले करें साबित आप पाक़-साफ़ हो !


मुझ पर लगायें बंदिशें जितनी भी आप चाहें ,
खुद पर लगाये जाने के भी ना खिलाफ हो !

मुझको सिखाना इल्म लियाकत का शबोरोज़ ,
पर पहले याद इसका खुद अलिफ़-काफ़ हो !

खुद को खुदा बनना 'नूतन' का छोड़ दो ,
जल्द दूर आपकी जाबिर ये जाफ़ हो !

                                                  शिखा कौशिक 'नूतन'




रविवार, 4 नवंबर 2012

' करवा चौथ जैसे त्यौहार क्यों मनाये जाते हैं ?'


' करवा चौथ जैसे त्यौहार क्यों मनाये  जाते  हैं ?'



अरी सुहागनों ! जरा धीरे से हंसो ,
यूं ना कहकहे लगाओ 
जानते हैं आज करवा चौथ है ,
पर तुम्हारी  कुछ माताएं ,
बहने ,बेटियां और सखियाँ 
असहज महसूस कर रही हैं आज के दिन 
क्योंकि वे सुहागन नहीं हैं !!




वर्ष भर तुमको रहता है 
इसी त्यौहार का ;इसी दिन का इंतजार ,
पर जो सुहागन नहीं हैं 
उनसे पूछो इस त्यौहार के आने से पूर्व के दिन 
और इस दिन कैसा सूनापन 
भर जाता है उनके जीवन में !









अरे सुनती नहीं हो !
धीरे चलो !
तुम्हारी पाजेब की छम-छम 
'उन' की भावनाओं को आहत कर रही हैं ,
वे इस दिन कितना भयभीत हैं !
जैसे किसी महान अपराध के लिए 
वर्ष के इस दिन दे दी जाती है 
उन्हें 'काले पानी ' की सजा !

इतना श्रृंगार  कर ,
चूड़ियाँ खनकाकर ,
हथेलियों पर मेहँदी रचाकर,
लाल साड़ी पहनकर ,
सिन्दूर सजाकर 
तुम क्यों  गौरवान्वित हो रही हो 
अपने सौभाग्यवती होने पर  ! 
  







कल तक कितनी ही तुम्हारी 
जाति  की यूं ही होती थी गौरवान्वित 
पर आज चाहती हैं छिपा लें 
खुद को सारे ज़माने से इस दिन 
ऐसे जैसे कोई  अस्तित्व ही नहीं है 
उनका इस दुनिया में !


ये भी भला कोई सौभाग्य हुआ 
जो पुरुष के होने से है अन्यथा 
स्त्री को बना देता है मनहूस ,
कमबख्त और हीन !


ऐसे त्यौहार क्यों मनाये  जाते  हैं ?
जो स्त्री -स्त्री को बाँट  देते  हैं ,
एक  को देते  हैं हक़   
हंसने का ,मुस्कुराने का 
और दूसरी को 
लांछित कर ,लज्जित कर ,
तानों की कटार  से काँट देते हैं !

                                शिखा कौशिक 'नूतन'



गुरुवार, 1 नवंबर 2012

नादानों मैं हूँ ' भगत सिंह '- बस इतना कहने आया था !!!

कैप्शन जोड़ें
इससे शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता  है .शहीद  -ए-आज़म  के नाम  पर  एक  चौराहे  के नाम रखने तक में पाकिस्तान  में आपत्ति  की जा  रही है .जिस युवक ने   देश की आज़ादी के खातिर प्राणों का उत्सर्ग करने तक में देर  नहीं की उसके  नाम पर एक चौराहे का नाम रखने तक में इतनी देर ....क्या  कहती  होगी  शहीद भगत  सिंह  की आत्मा ?यही  लिखने का प्रयास किया है -



आज़ादी  की खातिर हँसकर फाँसी को गले लगाया था ,
हिन्दुस्तानी  होने का बस अपना फ़र्ज़ निभाया था .

तब नहीं बँटा था मुल्क मेरा  भारत -पाकिस्तान में ,
थी दिल्ली की गलियां अपनी ; अपना लाहौर चौराहा था . 

पंजाब-सिंध में फर्क कहाँ ?आज़ादी का था हमें जूनून ,
अंग्रेजी  अत्याचारों से कब पीछे कदम हटाया था ?

आज़ाद मुल्क हो हम सबका; क्या ढाका,दिल्ली,रावलपिंडी !
इस मुल्क के हिस्से होंगे तीन ,कब सोच के खून बहाया था !

नादानों मैं हूँ ' भगत सिंह ' दिल में रख लेना याद मेरी ,
'रंग दे बसंती ' जिसने अपना चोला कहकर रंगवाया था .

बांटी तुमने नदियाँ -ज़मीन  ,मुझको हरगिज़ न देना बाँट  ,

कुछ शर्म  करो खुद पर बन्दों ! बस इतना  कहने आया  था !!!

                                                   जय  हिन्द !
                                             शिखा  कौशिक  'नूतन '