'मुझे ऐसे न खामोश करें '
आ ज मुंह खोलूंगी मुझे ऐसे न खामोश करें ,
मैं भी इन्सान हूँ मुझे ऐसे न खामोश करें !
तेरे हर जुल्म को रखा है छिपाकर दिल में ,
फट न जाये ये दिल कुछ तो आप होश करें !
मुझे बहलायें नहीं गजरे और कजरे से ,
रूमानी बातों से न यूँ मुझे मदहोश करें !
मेरी हर इल्तिजा आपको फ़िज़ूल लगी ,
है गुज़ारिश कि आज इनकी तरफ गोश करें !
मेरे वज़ूद पर ऊँगली न उठाओ 'नूतन' ,
खून का कतरा -कतरा यूँ न मेरा नोश करें !
शिखा कौशिक 'नूतन'
आ ज मुंह खोलूंगी मुझे ऐसे न खामोश करें ,
मैं भी इन्सान हूँ मुझे ऐसे न खामोश करें !
तेरे हर जुल्म को रखा है छिपाकर दिल में ,
फट न जाये ये दिल कुछ तो आप होश करें !
मुझे बहलायें नहीं गजरे और कजरे से ,
रूमानी बातों से न यूँ मुझे मदहोश करें !
मेरी हर इल्तिजा आपको फ़िज़ूल लगी ,
है गुज़ारिश कि आज इनकी तरफ गोश करें !
मेरे वज़ूद पर ऊँगली न उठाओ 'नूतन' ,
खून का कतरा -कतरा यूँ न मेरा नोश करें !
शिखा कौशिक 'नूतन'
6 टिप्पणियां:
बेहतरीन लेखनी ...
दस्तुर खामोश करने का ...ख़त्म कर ज़ालिम
खुल कर कहने का उनका भी हक है
दिल को छुती बेहतरीन रचना.
बहुत सुंदर रचना | हृदय के सच्चे विद्रोह के भाव को प्रदर्शित करती |
ஜ●▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬●ஜ
ब्लॉग जगत में नया "दीप"
ஜ●▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬●ஜ
बहुत सुन्दर और भाव पूर्ण रचना है शिखा जी |
आशा
वाह....
बहुत खूब लिखा है .अभिव्यक्ति को जैसे पंख ही लग गए हैं .
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