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मंगलवार, 21 जून 2011

मेरे वालिद

मेरे  वालिद 
ग़मों को ठोकरें मिटटी में मिला ही देती ,
मेरे वालिद ने आगे बढ़ के मुझे थाम लिया .

मुझे वजूद मिला एक नयी पहचान मिली ,
मेरे वालिद ने मुझे जबसे अपना नाम दिया .



मेरी नादानियों पर सख्त हो डांटा मुझको;
मेरे वालिद ने हरेक फ़र्ज़ को अंजाम दिया .

अपनी मजबूरियों को दिल में छुपाकर रखा ;
मेरे वालिद ने रोज़ ऐसा इम्तिहान दिया .

खुदा का शुक्र है जो मुझपे की रहमत ऐसी ;
मेरे वालिद के दिल में मेरे लिए प्यार दिया .
                                                          शिखा कौशिक 


8 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

अपनी मजबूरियों को दिल में छुपाकर रखा ; मेरे वालिद ने रोज़ ऐसा इम्तिहान दिया .
bahut sundar v marmik abhivyakti.badhai.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

मेरी नादानियों पर सख्त हो डांटा मुझको;
मेरे वालिद ने हरेक फ़र्ज़ को अंजाम दिया

Kya bat... Bahut hi sunder panktiyan

आशुतोष की कलम ने कहा…

पिता का योगदान हर व्यक्ति के जीवन का संबल होता है..
आप भाग्यशालियों में से एक हैं..
बधाइयाँ

vandana gupta ने कहा…

पिता को समर्पित बहुत सुन्दर रचना।

Manish Khedawat ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन रचना शिखा ज़ी ! बधाई !

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राजनेता - एक परिभाषा अंतस से (^_^)

Anita ने कहा…

उर्दू भाषा वैसे ही मिठास से भरी है फिर आपने वालिद जैसे खूबसूरत रिश्ते पर लिख कर उसे और भी सुंदर बना दिया है... सुभानअल्लाह!

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

बहुत ही सुन्दर.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर और सशक्त रचना!