क्या जरूरत है हमें तोप की - तलवार की
जंग लडनी है हमें तो नफरतों पर प्यार की .
इसमें हर इन्सान के दिल से मिटाने है गिले ;
बंद हो अब साजिशें अपनों के क़त्ल-ओ-आम की .
क्या जरूरत ....
है बहुत मुमकिन की हम हार जाएँ जंग में ;
ये घडी है सब्र की और इम्तिहान की .
क्या जरूरत ....
कल हमें काटा था उसने ;आज हम काटें उसे
छोड़ दो ये जिद जरा कीमत तो समझो जान की .
क्या जरूरत .....
शिखा कौशिक
जंग
5 टिप्पणियां:
कल हमें काटा था उसने ;आज हम काटें उसे
छोड़ दो ये जिद जरा कीमत तो समझो जान की
bahut sundar sandesh .badhai.
समसामयिक रचना।
बहुत सुन्दर रचना!
सुन्दर समसामयिक रचना....
बढ़िया प्रस्तुति | धन्यवाद |
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