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सोमवार, 6 जून 2011

जंग

क्या जरूरत है हमें तोप की - तलवार की 
जंग लडनी है हमें तो नफरतों पर प्यार की .

इसमें हर इन्सान के दिल से मिटाने है गिले ;
बंद हो अब साजिशें अपनों के क़त्ल-ओ-आम की .
क्या जरूरत ....

है बहुत मुमकिन की हम हार जाएँ जंग में ;
ये घडी है सब्र की और इम्तिहान की .
क्या जरूरत ....

कल हमें काटा था उसने ;आज हम काटें उसे 
छोड़ दो ये जिद जरा कीमत तो समझो जान की .
क्या जरूरत .....
                                     शिखा कौशिक 

जंग 

5 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

कल हमें काटा था उसने ;आज हम काटें उसे
छोड़ दो ये जिद जरा कीमत तो समझो जान की
bahut sundar sandesh .badhai.

vandana gupta ने कहा…

समसामयिक रचना।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना!

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सुन्दर समसामयिक रचना....

आकाश सिंह ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति | धन्यवाद |