शौहर की मैं गुलाम हूँ बहुत खूब बहुत खूब ,
दोयम दर्जे की इन्सान हूँ बहुत खूब बहुत खूब .
कर सकूं उनसे बहस बीवी को इतना हक कहाँ !
रखती बंद जुबान हूँ बहुत खूब बहुत खूब !
उनकी नज़र में है यही औकात इस नाचीज़ की ,
तफरीह का मैं सामान हूँ बहुत खूब बहुत खूब !
रखा छिपाकर दुनिया से मेरी हिफाज़त की सदा ,
मानती अहसान हूँ बहुत खूब बहुत खूब !
वे पीटकर पुचकारते कितने रहमदिल मर्द हैं !
उन पर ही मैं कुर्बान हूँ बहुत खूब बहुत खूब !
'नूतन' ज़माने में नहीं औरत की कीमत रत्ती भर ,
देखकर हैरान हूँ बहुत खूब बहुत खूब !
शिखा कौशिक 'नूतन'
4 टिप्पणियां:
Bahut Khub Bahut Khub,super
बहुत ही भावपूर्ण शब्दों में शिखा जी आपने मुस्लिम महिला के दर्द को अभिव्यक्त किया है. आभार कसाब को फाँसी :अफसोसजनक भी और सराहनीय भी.
aapka lekhan bhi
bahut khoob bahut khoob
आपने मुस्लिममहिला के दर्द को जबां दी है कमोबेश यही हाल त स्त्रियों की अब भी है बहुत सी जगह ।
कविता बहुत सुंदर बन पडी है ।
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