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गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

jeevan-naiya

जब अँधेरा ही अँधेरा
सामने दिखलाई दे;
एक कदम भी आगे
 रखने क़ा न हौसला रहे;
तब प्रभु के हाथ
जीवन-नैया को तू
छोड़ दे;
वो चाहें तो पार
उतारें; वो चाहें
तो लील दें.

1 टिप्पणी:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

Aisa karne se to koi chinta hi nahin rahati...sunder...sakaratmak