लिखूं 'कविता' नयी- नयी मैं;
बड़ी मुझे अभिलाषा है;
लेखन की 'पूजा' मैं करूँ;
बस कर्म मुझे ये भाता है.
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'प्रीति' प्रेम और अच्छे भाव से
कुछ भी जो भी रच दूंगी;
अपनी 'मनीषा' की 'छवि' से
सबके मन को रंग दूंगी.
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कोई 'ऋतु हो ; कोई समय हो;
बोले कोकिल या 'सारिका'
मेरी कविता-दीप'शिखा' से
'दीप्ति' हो यहाँ-वहां.
मैंने इस कविता में अपने साथ padhi अपनी कई सहेलियों का नाम जोड़ा है. यह भी एक तरीका है अपनी यादों को संजोकर रखने का.
1 टिप्पणी:
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