स्त्रियों की उम्र -पुरुषों का विमर्श
पन्द्रह की हो गयी हो
सलीके से रहो ;
घर का काम सीख लो
ससुराल में नाक मत कटवाना
सिलाई सीख लो
सीख लो खाना बनाना !
बीस से ऊपर हो गयी
अब तक विवाह नहीं हुआ ;
लड़की में खोट है या
बाप पर नहीं दहेज़
के लिए नोट हैं !
पैतीस की होने आई
एक बेटा न पैदा कर पायी ;
तीन तीन बेटियां
पैदा कर
पति की चिंता बढ़ाई !
पैतालीस में ही
बुढ़िया सी लगती है ;
ऐसी फब्तियां हर
स्त्री पर
पुरुष द्वारा कसी जाती हैं !
पुरुष इस पर भी
स्त्रियों पर लगाते हैं इल्ज़ाम
''स्त्रियाँ उम्र छिपाती हैं ''
क्या बताएं स्त्रियाँ
पुरुष वर्ग को
स्त्रियों की उम्र उनसे पहले ही
पुरुषों को पता चल जाती है !
पुरुषों के इस आचरण
से एक बात समझ आती है
ऐसी बाते करते पुरुष
वर्ग को कभी शर्म
नहीं आती है ! ! !
5 टिप्पणियां:
दूसरे से जिसकी अपेक्षाओं का कोई पार नहीं उसे शर्म काहे को आयेगी !
शिखा जी,
रचना के दो भाग हो गए हैं।
पैतालीस में ही बुढ़िया सी लगती है, यहाँ आकर पहला भाग पूर्ण हो जाता है। यहाँ तक रचना कविता है। इस के बाद का भाग पूरी तरह से एक वक्तव्य बन जाता है। जो बात दूसरे भाग के वक्तव्य में कही गई है उसे कविता में भी कहा जा सकता है। बस आप कुछ जल्दबाजी कर गईँ।
बढ़िया विचार
सटीक बात कहती सार्थक रचना
sateek kaha hai aapne .aabhar
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