लघु कथा -दोषी कौन
अस्पताल के बर्नवार्ड में बेड पर अस्सी प्रतिशत जली हुई सुलेखा का अंतिम बयाँ लिया जा रहा था .सुलेखा तड़पते हुए किसी प्रकार बोल रही थी -''मेरी इस दशा के लिए मेरे ससुराल वाले ज्यादा दोषी हैं.या मेरे मायके वाले ....मैं यह नहीं जानती पर जन्म के साथ ही मैं एक लड़की हूँ यह अहसास मुझे कराया जाता रहा .मेरी माँ मुझसे बचपन से ही सावधान करती रहती ''ठीक से काम कर ...कल को अपने घर जाएगी तो मुझे बदनाम करेगी क्या ?''पिताजी कहते ''ठीक चाल-चलन रख वर्ना कैसे ब्याह होगा ?''......विदाई के समय माँ ने कान में धीरे से कहा था -''अब बिटिया वही तेरा घर है ...भागवान औरत वही है जिसकी अर्थी उसके पति के घर से निकले .अब बिटिया हमारी लाज तेरे ही हाथ में है .मायके की लाज को संभाले मैं जब ससुराल पहुंची तो पहले दिन से ही ताने मिलने लगे -''क्या लाई है अपने घर से !एक से एक रिश्ते आ रहे थे हमारी अक्ल पर ही पत्थर पड़े थे जो इसे ब्याह लाये ...''हर त्यौहार पर भाई सिंधारा लाता ...पूछता अच्छी तो है जीजी ?मैं कह देती ''हाँ'' तो पलट कर यह न कहता ''कहाँ जीजी तू तो जल कर कोयला हो गयी है !सच कहूँ माँ -बाप -भाई के इस व्यवहार ने मुझे बहुत दुखी किया .कल जब मेरे पति ने मुझसे कहा की ....जा मेरे घर से निकल जा ...तब एक बार मेरे मन में आया कि क्या यह मेरा घर नहीं !...पर तभी ये विचार भी मेरे मन में आया कि जिस घर में मैं पैदा हुई ,चहकी,महकी ....जब वही घर मेरा नहीं तब ये घर कैसे हो सकता है ?मैं दौड़कर स्टोर रूम में गयी और मिटटी का तेल अपने पर उड़ेल लिया और आग लगा ली .अब आप लोग ही इंसाफ करते रहना कि मेरी इस दुर्दशा के लिए ससुराल वाले ज्यादा दोषी हैं या मायके वाले ....''
3 टिप्पणियां:
मार्मिक.... पूरी सामाजिक व्यवस्था ही दिशी नज़र आती है....
शिखा जी
जिन्दगी में परिस्थितियां हर समय अनुकूल नही होती है | विपरीत प्ररिस्थिति में संयम बरतनी चाहिए| आत्मा हत्या करने के बजाय हालात से लड़ना चाहिए| सुलेखा जी भी किसी की बीवी थी, किसी की बहन थी, किसी की भाभी थी तो किसी की बेटी थी| इन सभी दायित्व का बिना निर्वाह किये आत्मा हत्या करना बहुत बड़ा पाप है|
मै नही मानता की पति ने कह दिया की घर छोड़ दो तो सुलेखा जी को घर छोड़ देनी चाहिए थी|
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बहुत ही बढ़िया पोस्ट है
बहुत बहुत धन्यवाद|
उफ़ ……रौंगटे खडे कर देने वाला सच प्रश्नचिन्ह छोडता है।
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