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बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

''मुबारकबाद देते हैं !''

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''मुबारकबाद देते हैं !''


हमारी जीत को जो हार बना मात देते हैं !
वही हंसकर गले मिलकर मुबारकबाद देते हैं !
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बड़े हमदर्द बनकर दे रहे गम में जो तसल्ली ,
वही तो साज़िशें रच क़त्ल को अंजाम देते हैं !
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मेरी बदनामियों पर हो खफा दुनिया से भिड़ जाते ,
मुझे बदनाम कर ये इस हुनर से काम लेते हैं !
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नहीं हममें अक़्ल जो जान लें वे दोस्त या दुश्मन ,
मगर हम बेअक़्ल  शातिर सभी पहचान लेते हैं !
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बड़े मासूम हैं ; नादान हैं ; क्या कहें 'नूतन '
जो हमको क़त्ल कर कातिल का हमें नाम देते हैं !


शिखा कौशिक 'नूतन'

रविवार, 18 जनवरी 2015

*सुना कुत्तों की दावत है !*


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कहर बरसा  मेरे घर तो वो बोले सब सलामत है ,
गई छींटें जो उनकें घर तो बोले अब क़यामत है !
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मेरे बच्चों ने पी पानी गुज़ारी रात सारी है ,
बराबर के बड़े घर में सुना कुत्तों की दावत है !
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बिना गाली के जिनकी गुफ्तगूं होती नहीं पूरी ,
हमें इलज़ाम देकर कह रहे हम बे-लियाकत हैं !
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क़त्ल करते हैं और लाशों पे जो करते सियासत हैं ,
नहीं मालूम उनको एक अल्लाह की अदालत है !
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हमारे हाथ में है जो कलम वो सच ही लिखेगी ,
कलम के कातिलों से इस तरह करनी बगावत है !


शिखा कौशिक 'नूतन'

शनिवार, 10 जनवरी 2015

'अभी हार मत मानो !'


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असफलता से मिलेगी ;
राह सफलता की ,
है जरूरत नर नहीं ;
किंचित विकलता की ,
खुद में छिपी जो शक्ति है ,
उसको तो पहचानो !
अभी हार मत मानो !
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लूट गया सर्वस्व ;
अश्रु मत बहाओ तुम ,
होकर सचेत फिर उठो ;
न यूँ रहो गुमसुम ,
बिगड़े हुए काम को
ऐसे संवारो   !
अभी हार मत मानो !
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गिर गए तो क्या हुआ ;
घुटने न टेको ,
असफल होकर पुनः ;
प्रयास कर देखो ,
जय मिलेगी एक दिन ;
सत्य को जानो !
अभी हार मत मानो !

शिखा कौशिक 'नूतन'