कभी सुख कभी दुःख क़ा साया ,
कभी धूप तो कभी छाया ,
कभी चमकती हुई आशा ,
कभी अँधेरी निराशा ,
कभी मुस्कुराते चेहरे ;
कभी मुरझाई शक्ले ,
कभी सुनहरा प्रभात ,
कभी काली रात,
कभी सूखती धरती,
कभी बरसता बादल,
ये सब देखना है......
तो जिन्दगी जीकर देखिये ! !
जीवन में ह्रदय के उदगार विभिन्न रूप में प्रकट होते हैं.कभी कहानी कभी कविता से भरा ये ब्लॉग.....
फ़ॉलोअर
मंगलवार, 30 नवंबर 2010
शुक्रवार, 26 नवंबर 2010
hariyali ka geet
मैं .....सिर्फ मैं !
खड़ी हुई हूँ ..
हरी- हरी
बेलों ;पत्तियों
से घिरी हुई ,
''असीम आनंद ''
से अभिभूत ,
सोचती हुई
इसकी मनोरमता
के विषय में ,
तभी........कुछ
खग- वृन्दो क़ा
मधुर स्वर
मेरे कानो से
....टकराया !
जैसे इस हरियाली
ने हो अपना
''मीठा गीत सुनाया ''.
खड़ी हुई हूँ ..
हरी- हरी
बेलों ;पत्तियों
से घिरी हुई ,
''असीम आनंद ''
से अभिभूत ,
सोचती हुई
इसकी मनोरमता
के विषय में ,
तभी........कुछ
खग- वृन्दो क़ा
मधुर स्वर
मेरे कानो से
....टकराया !
जैसे इस हरियाली
ने हो अपना
''मीठा गीत सुनाया ''.
शुक्रवार, 19 नवंबर 2010
इंसानियत क़ा दरिया
किसी की आँख का आंसू
मेरी आँखों में आ छलके;
किसी की साँस थमते देख
मेरा दिल चले थमके;
किसी के जख्म की टीसों पे
मेरी रूह तड़प जाये;
किसी के पैर के छालों से
मेरी आह निकल जाये;
प्रभु ऐसे ही भावों से मेरे इस दिल को तुम भर दो,
मैं कतरा हूँ मुझे इंसानियत क़ा दरिया तुम कर दो.
किसी क़ा खून बहता देख
मेरा खून जम जाये;
किसी की चीख पर मेरे
कदम उस ओर बढ़ जाएँ;
किसी को देख कर भूखा
निवाला न निगल पाऊँ ;
किसी मजबूर के हाथों की
मैं लाठी ही बन जाऊं;
प्रभु ऐसे ही भावों से मेरे इस दिल को तुम भर दो,
मैं कतरा हूँ मुझे इंसानियत क़ा दरिया तुम कर दो.
शिखा कौशिक 'नूतन'
सोमवार, 15 नवंबर 2010
dev uthhan ekaadshi
हे लक्ष्मीपति ! हे श्री नारायण !
आज कार्तिक-मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी है;
चार मास व्यतीत हुए;
शयन-समय समाप्त हुआ;
हे सृष्टि के पालनहार !
जाग जाइये !जाग जाइये!!
**************** ******************
असुरों क़ा संहार करिए;
हम सबका उद्धार करिए;
मिटा दीजिये अज्ञान-तम;
जीव-जगत को बना दीजिये सुदरतम;
कल्याण कीजिये !!
हे करुणासागर !!
जाग जाइये ! जाग जाइये!
************** ****************
हम जानते है!
आपकी निद्रा ''योग-निद्रा'' थी;
जिसमे आप अंतस में
निहार रहे थे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को ;
करते थे नियोजन तब भी;
प्रभु बलि के द्वार से
अर्थात पाताल-लोक से
लौट आइये !
हे देव !! जाग जाइये ! जाग जाइये !!
आज कार्तिक-मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी है;
चार मास व्यतीत हुए;
शयन-समय समाप्त हुआ;
हे सृष्टि के पालनहार !
जाग जाइये !जाग जाइये!!
**************** ******************
असुरों क़ा संहार करिए;
हम सबका उद्धार करिए;
मिटा दीजिये अज्ञान-तम;
जीव-जगत को बना दीजिये सुदरतम;
कल्याण कीजिये !!
हे करुणासागर !!
जाग जाइये ! जाग जाइये!
************** ****************
हम जानते है!
आपकी निद्रा ''योग-निद्रा'' थी;
जिसमे आप अंतस में
निहार रहे थे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को ;
करते थे नियोजन तब भी;
प्रभु बलि के द्वार से
अर्थात पाताल-लोक से
लौट आइये !
हे देव !! जाग जाइये ! जाग जाइये !!
गुरुवार, 11 नवंबर 2010
bijli vibhag par mukadma
सांयकाल के साढ़े सात बज रहे थे.जून क़ा महीना था.तनु ने भोजन डायनिंग टेबल पर लाकर रखा ही था क़ि बिजली भाग गयी.इनवर्टर दो दिन से ख़राब था.साहिल ने किसी तरह टॉर्च ढूढ़ कर ऑन की और एक मोमबत्ती जला दी.तनु पहले ही पसीने-पसीने हो रही थी.बिजली भागते ही उसका गुस्सा फूट पड़ा--.....आपसे परसों से कह रही हूँ इनवर्टर ठीक करा दीजिये...लाइट क़ा तो यही है......मैं मरुँ या जियूं आप पर तो फर्क ही नहीं पड़ता .जब कुछ करना ही नहीं था तो शादी क्यों की ?अब ऐसी गर्मी में क्या खाना खाया जायेगा? यह कहती हुई तनु बैडरूम की ओर बढ़ ली .साहिल क़ा दिमाग भी गर्मी से भन्ना रहा था. वो ऊँची आवाज में बोला ''तुम्हारा जितना कर दूँ उतना कम .अरे भाई इंसान हूँ दिनभर आफिस में किटकिट और घर पर तुम्हारी बडबड .....'' बैडरूम के द्वार तक पहुची तनु इस बात पर भड़कती हुई बोली ''......अच्छा मैं बड-बड करती रहती हूँ.......ठीक है सुबह ही अपने मायके चली जाती हूँ तभी तुम्हे ....'' तनु अपना वाक्य पूरा करती इससे पहले ही बिजली आ गयी.पंखा चलने से मोमबती बुझ गयी और तनु-साहिल क़ा गुस्सा भी.तनु डायनिंग टेबल की ओर आती हुई बोली ''कहो चली जाऊ ? '' साहिल मुस्कुराता हुआ बोला ''हाँ ! चली जाओ .मैं तो बिजली विभाग पर केस ठोक दूंगा क़ि तुम्हारी वजह से मेरी पत्नी घर छोड़ कर चली गयी............''साहिल के वाक्य पूरा करने से पहले ही बिजली फिर से भाग गयी.इस बार दोनों अँधेरे में जोर से हँस पड़े.तनु हँसते हुए बोली ''लो ठोक ही दो बिजली विभाग पर मुकदमा''.
सोमवार, 8 नवंबर 2010
sachchi luxmi
साहिल ने तनु को आवाज लगाकर कहा-''तनु कहाँ रह गयी तुम? हमेशा तुम्हारी वजह से लक्ष्मी पूजन में देरी होती है. साहिल के बोलने क़ा लहजा इतना सख्त था की तनु की आँखों में आंसू आ गए.ये देखकर साहिल की माताजी ने साहिल को डाटते हुए कहा ''साहिल मैंने तो तुझे सदा स्त्री क़ा सम्मान करना सिखाया था फिर तू इतना कैसे बिगड़ गया? अरे! पहले घर की लक्ष्मी क़ा तो सम्मान कर tabhi तो teri पूजा से लक्ष्मी देवी prasann hogi .'' साहिल को अपनी गलती क़ा अहसास हुआ और उसने तनु की ओर मुस्कुराते हुए कहा ''गृहलक्ष्मी जी यहाँ आ जाइये हमे आपसे माफ़ी भी मांगनी है और आपकी पूजा भी करनी है''. साहिल की बात सुनकर माता जी और तनु दोनों हस पड़ी.
शुक्रवार, 5 नवंबर 2010
short story-phool
सिमरन दो साल के बेटे विभु को लेकर जब से maiyke आई थी; उसका मन उचाट था.गगन से जरा सी बात पर बहस ने ही उसे यंहा आने के लिए विवश किया था.यूँ गगन और उसकी 'वैवाहिक रेल' पटरी पर ठीक गति से चल रही थी पर सिमरन के नौकरी की जिद karne पर गगन ने इस रेल में इतनी जोर क़ा ब्रेक लगाया क़ि यह पटरी पर से उतर गई और सिमरन विभु को लेकर मायके आ गयी.सिमरन अपने से निकली तो देखा विभु उस फूल क़ि तरह मुरझा गया था जिसे बगिया से तोड़कर बिना पानी दिए यूँ ही फेंक दिया गया हो.कई बार सिमरन ने मोबाईल उठाकर गगन को फोन मिलाना chahaपर नहीं मिला पाई ये सोचकर क़ि ''उसने क्यों नहीं मिलाया?' मम्मी-पापा व् छोटा भाई उसे समझाने क़ा प्रयास कर हार चुके थे. विभु ने ठीक से खाना भी नहीं खाया था बस पापा के पास ले चलो क़ि जिद लगाये बैठा था.विभु को उदास देखकर आखिर सिमरन ने मोबाईल से गगन क़ा nmbar मिलाया और बस इतना कहा-''तुम तो फोन करना मत,विभु क़ा भी dhyan नहीं tumhe?'' गगन ने एक क्षण की चुप्पी के बाद कहा -''सिम्मी मैं शर्मिंदा था......मुझे शब्द नहीं मिल रहे थे...........पर तुम अपने घर क़ा गेट तो खोल दो ........मैं बाहर ही खड़ा हूँ....!''यह सुनते ही सिमरन की अंको me आंसू आ गए वो विभु को गोद में उठाकर गेट खोलने के लिए बाद ली. गेट खोते ही गगन को देखकर विभु मचल उठा ........पापा.....पापा........'' कहता हागगन की गोद में चला गया.सिमरन ने देखा की आज उसका फूल फिर से खिल उठा था और महक भी रहा था.
सोमवार, 1 नवंबर 2010
aao hum deepavali manayen
आओ हम दीपावली क़ा पर्व ऐसे मनाये;
दीप आशा के जगाकर; निराशा-तम को मिटाए.
हमारे मन में जो भी मैल हो द्वेष द्वन्द क़ा
रगड़-रगड़ के प्रेम -झाड़ू से usko हटाये.
ग़लतफ़हमी के सारे जाले साफ़ हम कर दे;
ख़ुशी के फूलों को फिर से खिलाएं.
हरेक स्त्री है luxmi बस इतना जान ले;
उसे देंगे सदा सम्मान;मन से ये कसम खाए.
न केवल कोठियों पर हो जगमगाहट;
हरेक झोपडी भी रोशिनी से अबके नहाये.
मिठाई बाटनी है अबके हमको मीठे बोलों की;
रंगोली द्वार पर सुन्दर सी सजाएँ.
कंडील टांग दें अपने घरों पर सन्देश ये लिखकर;
अमन की हवा ही इसको hilaye.
जगे जब दीप समता क़ा मिटाकर भेद पैसे क़ा;
अमावास की अंधरी रात भी पूनumकी हो जाये.
दीप आशा के जगाकर; निराशा-तम को मिटाए.
हमारे मन में जो भी मैल हो द्वेष द्वन्द क़ा
रगड़-रगड़ के प्रेम -झाड़ू से usko हटाये.
ग़लतफ़हमी के सारे जाले साफ़ हम कर दे;
ख़ुशी के फूलों को फिर से खिलाएं.
हरेक स्त्री है luxmi बस इतना जान ले;
उसे देंगे सदा सम्मान;मन से ये कसम खाए.
न केवल कोठियों पर हो जगमगाहट;
हरेक झोपडी भी रोशिनी से अबके नहाये.
मिठाई बाटनी है अबके हमको मीठे बोलों की;
रंगोली द्वार पर सुन्दर सी सजाएँ.
कंडील टांग दें अपने घरों पर सन्देश ये लिखकर;
अमन की हवा ही इसको hilaye.
जगे जब दीप समता क़ा मिटाकर भेद पैसे क़ा;
अमावास की अंधरी रात भी पूनumकी हो जाये.
सदस्यता लें
संदेश (Atom)