मैं .....सिर्फ मैं !
खड़ी हुई हूँ ..
हरी- हरी
बेलों ;पत्तियों
से घिरी हुई ,
''असीम आनंद ''
से अभिभूत ,
सोचती हुई
इसकी मनोरमता
के विषय में ,
तभी........कुछ
खग- वृन्दो क़ा
मधुर स्वर
मेरे कानो से
....टकराया !
जैसे इस हरियाली
ने हो अपना
''मीठा गीत सुनाया ''.
2 टिप्पणियां:
हरियाली का आनंद ही कुछ और है.
आप की इस रचना में लुप्त होती हरियाली को बचाने का सन्देश भी महसूस कर रहा हूँ.
प्रकृति को नजदीक से देखने का अलग ही आनंद है |
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