फ़ॉलोअर

शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

hariyali ka geet

मैं .....सिर्फ मैं !
खड़ी हुई हूँ ..
हरी- हरी
बेलों ;पत्तियों
से घिरी हुई ,
''असीम आनंद ''
से अभिभूत ,
सोचती हुई
इसकी मनोरमता
के विषय में ,
तभी........कुछ
खग- वृन्दो   क़ा 
मधुर स्वर 
मेरे कानो से 
....टकराया !
जैसे इस हरियाली 
ने हो अपना
''मीठा गीत सुनाया ''.

2 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

हरियाली का आनंद ही कुछ और है.
आप की इस रचना में लुप्त होती हरियाली को बचाने का सन्देश भी महसूस कर रहा हूँ.

naresh singh ने कहा…

प्रकृति को नजदीक से देखने का अलग ही आनंद है |