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रविवार, 27 मार्च 2016

मैं ऐसे मित्र नहीं चाहता !

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देख दुःखों में डूबा मुझको ;
जिनके उर आनंद मनें ,
किन्तु मेरे रह समीप ;
मेरे जो हमदर्द बनें ,
ढोंग मित्रता का किंचिंत ऐसा न मुझको भाता !
मैं ऐसे मित्र नहीं चाहता !
 सुन्दर -मँहगे उपहारों से ;
भर दें जो झोली मेरी ,,
पर संकट के क्षण में जो ;
आने में करते देरी ,
तुम्हीं बताओ कैसे रखूँ उनसे मैं नेह का नाता !
मैं ऐसे मित्र नहीं चाहता !
नहीं तड़पता गर दिल उनका ;
जब आँख मेरी नम होती है ,
देख तरक्की मेरी उनको ;
यदि जलन सी होती है ,
कंटक युक्त हार फूल का मुझको लाकर पहनाता !
मैं ऐसे मित्र नहीं चाहता !


शिखा कौशिक 'नूतन '