माँ! तेरे जैसा कोई नहीं!
हम सब गलत
बस तुम ही सही.
तुम्हरे आँचल
की छाया में;
सब कुछ हमने पाया.
तुम्हारा स्नेह पाकर
ही हमने पाई
है ये काया.
''तुम हो तो हम है
तुम नहीं तो हम नहीं''.
माँ! तेरे जैसा कोई नहीं!
जीवन में ह्रदय के उदगार विभिन्न रूप में प्रकट होते हैं.कभी कहानी कभी कविता से भरा ये ब्लॉग.....
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रविवार, 31 अक्टूबर 2010
गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010
jeevan-naiya
जब अँधेरा ही अँधेरा
सामने दिखलाई दे;
एक कदम भी आगे
रखने क़ा न हौसला रहे;
तब प्रभु के हाथ
जीवन-नैया को तू
छोड़ दे;
वो चाहें तो पार
उतारें; वो चाहें
तो लील दें.
सामने दिखलाई दे;
एक कदम भी आगे
रखने क़ा न हौसला रहे;
तब प्रभु के हाथ
जीवन-नैया को तू
छोड़ दे;
वो चाहें तो पार
उतारें; वो चाहें
तो लील दें.
सोमवार, 25 अक्टूबर 2010
poem-amar-suhagan
हे! शहीद की प्राणप्रिया
तू ऐसे शोक क्यूँ करती है?
तेरे प्रिय के बलिदानों से
हर दुल्हन मांग को भरती है.
******************************************
श्रृंगार नहीं तू कर सकती;
नहीं मेहदी हाथ में रच सकती;
चूड़ी -बिछुआ सब छूट गए;
कजरा-गजरा भी रूठ गए;
ऐसे भावों को मन में भर
क्यों हरदम आँहे भरती है;
तेरे प्रिय के बलिदानों से
हर दीपक में ज्योति जलती है.
*********************************************
सब सुहाग की रक्षा हित
जब करवा-choth -व्रत करती hain
ये देख के तेरी आँखों से
आंसू की धारा बहती है;
यूँ आँखों से आंसू न बहा;हर दिल की
धड़कन कहती है--------
जिसका प्रिय हुआ शहीद यंहा
वो ''अमर सुहागन'' रहती है.
तू ऐसे शोक क्यूँ करती है?
तेरे प्रिय के बलिदानों से
हर दुल्हन मांग को भरती है.
******************************************
श्रृंगार नहीं तू कर सकती;
नहीं मेहदी हाथ में रच सकती;
चूड़ी -बिछुआ सब छूट गए;
कजरा-गजरा भी रूठ गए;
ऐसे भावों को मन में भर
क्यों हरदम आँहे भरती है;
तेरे प्रिय के बलिदानों से
हर दीपक में ज्योति जलती है.
*********************************************
सब सुहाग की रक्षा हित
जब करवा-choth -व्रत करती hain
ये देख के तेरी आँखों से
आंसू की धारा बहती है;
यूँ आँखों से आंसू न बहा;हर दिल की
धड़कन कहती है--------
जिसका प्रिय हुआ शहीद यंहा
वो ''अमर सुहागन'' रहती है.
शनिवार, 23 अक्टूबर 2010
poem-jindgi kya hai?
जिन्दगी क्या है?
ख़ुशी के दो -चार पल.
ख़ुशी क्या है?
हर्दय में उठती तरंगों की हलचल.
ह्रदय क्या है? भावनाओं का उद्गम-स्थल.
भावना क्या है?
एक अति सुन्दर वृति.
सुन्दर क्या है?
जो नयनों को भाए.
नयन क्या है?
जो वास्तविकता दिखलाए.
वास्तविकता क्या है?
ये सारा संसार.
संसार क्या है?
दुखों का भंडार.
दुःख क्या है?
सुख की anupasthiti.
सुख क्या है?
मनचाहे की उपस्थिति.
मनचाहा क्या है?
खुशहाल जिन्दगी.
जिन्दगी क्या है?
ख़ुशी के दो -चार पल.
ख़ुशी के दो -चार पल.
ख़ुशी क्या है?
हर्दय में उठती तरंगों की हलचल.
ह्रदय क्या है? भावनाओं का उद्गम-स्थल.
भावना क्या है?
एक अति सुन्दर वृति.
सुन्दर क्या है?
जो नयनों को भाए.
नयन क्या है?
जो वास्तविकता दिखलाए.
वास्तविकता क्या है?
ये सारा संसार.
संसार क्या है?
दुखों का भंडार.
दुःख क्या है?
सुख की anupasthiti.
सुख क्या है?
मनचाहे की उपस्थिति.
मनचाहा क्या है?
खुशहाल जिन्दगी.
जिन्दगी क्या है?
ख़ुशी के दो -चार पल.
poem-stri ka udghosh
कोमल नहीं हैं कर मेरे;
न कोमल कलाई है;
दिल नहीं है मोम का
प्रस्तर की कड़ाई है.
***********************
नहीं हैं झील सी ऑंखें;
हैं इनमे खून का दरिया;
मै हूँ मजबूत इरादों की
नहीं मै नाजुक -सी गुडिया.
***************************
उठेगा वार तेरा जो मुझे
दबाने के लिए;
उसे मै तोड़ dalungi
भले पहने हूँ चूड़िया.
************************
मुझे जो सोचकर अबला
करोगे बात शोषण की;
मिटा दूंगी तेरी हस्ती
है मुझमे आग शोलों की.
****************************
न कोमल कलाई है;
दिल नहीं है मोम का
प्रस्तर की कड़ाई है.
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नहीं हैं झील सी ऑंखें;
हैं इनमे खून का दरिया;
मै हूँ मजबूत इरादों की
नहीं मै नाजुक -सी गुडिया.
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उठेगा वार तेरा जो मुझे
दबाने के लिए;
उसे मै तोड़ dalungi
भले पहने हूँ चूड़िया.
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मुझे जो सोचकर अबला
करोगे बात शोषण की;
मिटा दूंगी तेरी हस्ती
है मुझमे आग शोलों की.
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शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2010
poem-meri maa
मलाई सी hatheli से
thapki देती मेरी माँ!
मेरे संग- संग हंसती
फिर मेरे ही संग रो
लेती माँ!
मै गिर jaun;उठ न paun
मुझे उठाकर बड़ा सहारा
देती माँ!
खुद जग-जग कर
मुझे सुलाती;
मेरे सारे काम कराती;
बड़े लाड से चूम के माथा
नई कहानी कहती माँ!
thapki देती मेरी माँ!
मेरे संग- संग हंसती
फिर मेरे ही संग रो
लेती माँ!
मै गिर jaun;उठ न paun
मुझे उठाकर बड़ा सहारा
देती माँ!
खुद जग-जग कर
मुझे सुलाती;
मेरे सारे काम कराती;
बड़े लाड से चूम के माथा
नई कहानी कहती माँ!
गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010
poem-bam visphot
फिर हुआ बम-विस्फोट;
उड़ गए कई जन
हवा में
मात्र मांस का एक
लोथड़ा बन कर,
जब सब शांत हुआ,
धुआं छट gaya .
तब का देखकर
नज़ारा शैतानो
का दिल भी दहल
गया,खून से
लथपथ जमीन
उस पर बिखरे शव,
ये नहीं एक
मात्र घटना
ये हो रही हैं
प्रतिपल यहाँ
और वहां.
उड़ गए कई जन
हवा में
मात्र मांस का एक
लोथड़ा बन कर,
जब सब शांत हुआ,
धुआं छट gaya .
तब का देखकर
नज़ारा शैतानो
का दिल भी दहल
गया,खून से
लथपथ जमीन
उस पर बिखरे शव,
ये नहीं एक
मात्र घटना
ये हो रही हैं
प्रतिपल यहाँ
और वहां.
बुधवार, 20 अक्टूबर 2010
poem-sharafat
मै हूँ शरीफ
जानते हैं सब;
इसलिए कोई भी
धमका जाता है
अगर सामने हो
कोई बदमाश
तो प्रत्येक
उसके पैरों में
गिरकर सिर झुकाता है;
सच कहूँ तो
ये शराफत भी बन
gayi hai एक आफत;
जिसको भी देखते हैं शरीफ
उसके समक्ष खुद-ब -खुद
बन जाते है बदमाश
अन्य sab .
जानते हैं सब;
इसलिए कोई भी
धमका जाता है
अगर सामने हो
कोई बदमाश
तो प्रत्येक
उसके पैरों में
गिरकर सिर झुकाता है;
सच कहूँ तो
ये शराफत भी बन
gayi hai एक आफत;
जिसको भी देखते हैं शरीफ
उसके समक्ष खुद-ब -खुद
बन जाते है बदमाश
अन्य sab .
मंगलवार, 19 अक्टूबर 2010
poem-gareebon se puchhiye...
लगातार कितने
घंटों से
हो रही है
बारिश;
अमीरों के लिए
एक मनमोहक
सुहावना
मौसम है ये;
पर कच्चे घरों में
रहने वाले और रोज
मजदूरी कर ने वाले
उन इंसानों से पूछिये
जिन्हें शायद
रोज मिलने
वाली दो
'रोटियों' में से
आज आधी भी
न मिल पायेगी.
घंटों से
हो रही है
बारिश;
अमीरों के लिए
एक मनमोहक
सुहावना
मौसम है ये;
पर कच्चे घरों में
रहने वाले और रोज
मजदूरी कर ने वाले
उन इंसानों से पूछिये
जिन्हें शायद
रोज मिलने
वाली दो
'रोटियों' में से
आज आधी भी
न मिल पायेगी.
सोमवार, 18 अक्टूबर 2010
vikhyat: poem-samay
vikhyat: poem-samay: "कुछ छूटता -सा दूर जाता हुआ बार-बार याद आकर रुलाता -सा; क्या है? मै नहीं जानती. कुछ सरकता -सा कुछ बिखरता -सा कुछ फिसलता -सा कुछ पलटता -सा;..."
poem-samay
कुछ छूटता -सा
दूर जाता हुआ
बार-बार याद आकर
रुलाता -सा;
क्या है?
मै नहीं जानती.
कुछ सरकता -सा
कुछ बिखरता -सा
कुछ फिसलता -सा
कुछ पलटता -सा;
क्या है?
मै नहीं जानती.
कंही ये 'समय' तो नहीं-
जो प्रत्येक पल के sath
पीछे छूटता;
हर कदम के sath
दूर होता;
जो बीत गया; उसे
पुन: पाने की आस में
रुलाता ;
धीरे-धीरे आगे बढता हुआ;
हमारे हाथों से निकलता हुआ;
कभी अच्छा ;कभी बुरा;
हाँ! ये वक़्त ही है-
मै हूँ इसे जानती!
दूर जाता हुआ
बार-बार याद आकर
रुलाता -सा;
क्या है?
मै नहीं जानती.
कुछ सरकता -सा
कुछ बिखरता -सा
कुछ फिसलता -सा
कुछ पलटता -सा;
क्या है?
मै नहीं जानती.
कंही ये 'समय' तो नहीं-
जो प्रत्येक पल के sath
पीछे छूटता;
हर कदम के sath
दूर होता;
जो बीत गया; उसे
पुन: पाने की आस में
रुलाता ;
धीरे-धीरे आगे बढता हुआ;
हमारे हाथों से निकलता हुआ;
कभी अच्छा ;कभी बुरा;
हाँ! ये वक़्त ही है-
मै हूँ इसे जानती!
रविवार, 17 अक्टूबर 2010
poem-vijay ka virat parv 'vijaydashmi'
''असत्य पर सत्य की; अभिमान पर स्वाभिमान की;
अंधकार पर प्रकाश की; पाप पर पुण्य की'
अमंगल पर मंगल की; अनीति पर नीति की;
' विजय का विराट पर्व'
क्रूरता पर करुना की ; वासना पर प्रेम की ;
उदंडता पर अनुशासन की; निर्लज्जता पर मर्यादा की;
विषाद पर आनंद की ;द्वेष पर sahishunta की;
'विजय का विराट पर्व'
निष्ठुरता पर संवेदनशीलता की; क्रोध पर क्षमा की;
तामसिकता पर सात्विकता की; लोकपीडा पर लोकमंगल की;
दुश्चरित्रता पर sachchritrta की; संकुचित पर उदात्त की;
'विजय ka विराट पर्व'
भक्षक पर रक्षक की; दुष्ट पर दयावान की;
शत्रुत्त्व पर बन्धुत्त्व की; मै पर हम की;
रावन पर shri 'राम' की
'विजय का विराट पर्व'
***************************
अंधकार पर प्रकाश की; पाप पर पुण्य की'
अमंगल पर मंगल की; अनीति पर नीति की;
' विजय का विराट पर्व'
क्रूरता पर करुना की ; वासना पर प्रेम की ;
उदंडता पर अनुशासन की; निर्लज्जता पर मर्यादा की;
विषाद पर आनंद की ;द्वेष पर sahishunta की;
'विजय का विराट पर्व'
निष्ठुरता पर संवेदनशीलता की; क्रोध पर क्षमा की;
तामसिकता पर सात्विकता की; लोकपीडा पर लोकमंगल की;
दुश्चरित्रता पर sachchritrta की; संकुचित पर उदात्त की;
'विजय ka विराट पर्व'
भक्षक पर रक्षक की; दुष्ट पर दयावान की;
शत्रुत्त्व पर बन्धुत्त्व की; मै पर हम की;
रावन पर shri 'राम' की
'विजय का विराट पर्व'
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शनिवार, 16 अक्टूबर 2010
poem-aatma ki prasanta
मेरा इस जगत में जन्म
मेरे माता-पिता के lie
हर्ष का कारण बना;
किन्तु 'मै' तो रोता हुआ आया
क्योंकि परमपिता परमात्मा
के परम -धाम से मुझे
यहाँ भेजा गया;
परमशान्ति से अशांति के इस
लोक में आने पर आत्मा
भला कैसे प्रसन्न होती?
माता -पिता ने बड़े
प्रयत्नों से मेरी इस देह का
पालन-पोषण किया.
वे प्रसन्न थे क्योंकि
मेरी मानव देह हृष्ट-पुष्ट
हो विकसित हो रही थी;
किन्तु मेरी आत्मा तो
धीरे-धीरे सांसारिक मोह-माया
से कलुषित हो रही थी;
देह के विकास के साथ-साथ
काम; क्रोध;मोह-ममता
के जाल में मेरी आत्मा fansti गई;
जैसे निर्मल जल मैला हो जाता है
वैसे ही पारदर्शी मेरी आत्मा
मैली होती गई;सांसारिक लोभों से
मै स्वयं को; अपने अंतर्मन को'
अपने आतम-ज्ञान को भोल
भौतिक वस्तुओं और व्यापारों को
सब कुछ समझने लगा;
धन; मान; प्रतिष्ठा को पाकर
इठलाने; इतराने लगा;
मै हर्ष से पुलकित हुआ
पर आत्मा भला कैसे प्रसन्न होती?
आज मेरी देह निर्बल;रोगयुक्त
mratyushaiya पर पड़ी है;
मै दर्द से तड़प रहा हूँ;
मेरे नैनों में पश्चाताप के आंसू हैं;
इस संसार में आकर ;क्या-क्या
कुकर्म किये? सबके द्रश्य मेरे
नेत्रों में एक-एक कर घोम रहे हैं;
मै आहें भर रहा हूँ;दुखी हूँ;
किन्तु मेरी आत्मा प्रसन्न है
क्योंकि आज इस देह से निकलकर
पुनः परमपिता के
पवान्लोक में प्रस्थान करने जा रही है;
आनन्दसागर में मिलने;मैली बूँद .
रुपी आत्मा पुनः swaachh होने जा रही है .;;
मेरे माता-पिता के lie
हर्ष का कारण बना;
किन्तु 'मै' तो रोता हुआ आया
क्योंकि परमपिता परमात्मा
के परम -धाम से मुझे
यहाँ भेजा गया;
परमशान्ति से अशांति के इस
लोक में आने पर आत्मा
भला कैसे प्रसन्न होती?
माता -पिता ने बड़े
प्रयत्नों से मेरी इस देह का
पालन-पोषण किया.
वे प्रसन्न थे क्योंकि
मेरी मानव देह हृष्ट-पुष्ट
हो विकसित हो रही थी;
किन्तु मेरी आत्मा तो
धीरे-धीरे सांसारिक मोह-माया
से कलुषित हो रही थी;
देह के विकास के साथ-साथ
काम; क्रोध;मोह-ममता
के जाल में मेरी आत्मा fansti गई;
जैसे निर्मल जल मैला हो जाता है
वैसे ही पारदर्शी मेरी आत्मा
मैली होती गई;सांसारिक लोभों से
मै स्वयं को; अपने अंतर्मन को'
अपने आतम-ज्ञान को भोल
भौतिक वस्तुओं और व्यापारों को
सब कुछ समझने लगा;
धन; मान; प्रतिष्ठा को पाकर
इठलाने; इतराने लगा;
मै हर्ष से पुलकित हुआ
पर आत्मा भला कैसे प्रसन्न होती?
आज मेरी देह निर्बल;रोगयुक्त
mratyushaiya पर पड़ी है;
मै दर्द से तड़प रहा हूँ;
मेरे नैनों में पश्चाताप के आंसू हैं;
इस संसार में आकर ;क्या-क्या
कुकर्म किये? सबके द्रश्य मेरे
नेत्रों में एक-एक कर घोम रहे हैं;
मै आहें भर रहा हूँ;दुखी हूँ;
किन्तु मेरी आत्मा प्रसन्न है
क्योंकि आज इस देह से निकलकर
पुनः परमपिता के
पवान्लोक में प्रस्थान करने जा रही है;
आनन्दसागर में मिलने;मैली बूँद .
रुपी आत्मा पुनः swaachh होने जा रही है .;;
शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2010
poem-pushp
हे पुष्प!
मुझे तुमसे स्नेह है
क्योकि तुम काँटों के
बीच रहकर ;
अनेक कष्टों को सहकर;
बाटते हो सुगंध;
कभी रोते नहीं;
रहते हो मुस्कुराते हुए;
सचमुच तुम हो
एक उदाहरण
इस संसार में;
जो देता है
'दुखों को सहकर
मुस्कुराते रहने की प्रेरणा'
मुझे तुमसे स्नेह है
क्योकि तुम काँटों के
बीच रहकर ;
अनेक कष्टों को सहकर;
बाटते हो सुगंध;
कभी रोते नहीं;
रहते हो मुस्कुराते हुए;
सचमुच तुम हो
एक उदाहरण
इस संसार में;
जो देता है
'दुखों को सहकर
मुस्कुराते रहने की प्रेरणा'
गुरुवार, 14 अक्टूबर 2010
poem-ek prashn
दहेज़- प्रथा पर
कितने ही निबंध
लिखें होंगें उसने;
कितना ही बुरा
कहा होगा;
लेकिन 'वो'
कली फिर से मसल
दी गई;
नाम 'पूनम' हो या 'छवि'
या कुछ और;
कब रुकेगा
कत्लों का
यह दौर?पूछती
है हर बेटी
इस मूक समाज से;
जो विरोध में
आते हैं दहेज़-हत्या के
क्या निजी तौर पर वे
भी नहीं लेते 'दहेज़'?
एक प्रश्न
जिसका नहीं है
आज किसी के पास
संतोषजनक जवाब....
कितने ही निबंध
लिखें होंगें उसने;
कितना ही बुरा
कहा होगा;
लेकिन 'वो'
कली फिर से मसल
दी गई;
नाम 'पूनम' हो या 'छवि'
या कुछ और;
कब रुकेगा
कत्लों का
यह दौर?पूछती
है हर बेटी
इस मूक समाज से;
जो विरोध में
आते हैं दहेज़-हत्या के
क्या निजी तौर पर वे
भी नहीं लेते 'दहेज़'?
एक प्रश्न
जिसका नहीं है
आज किसी के पास
संतोषजनक जवाब....
बुधवार, 13 अक्टूबर 2010
poem-sandhya
मंदिरों से आती
भजनों की आवाज;
टन-टन आती
घंटों की dhvni;
दूर आकाश में
बादलों के मध्यः
से चमकती नीलिमा;
मंद-मंद चलती
पवन का स्पर्श;
अपने घरों को
लौटते पक्षियों के
पंखों की fadfadahat;
समझे कुछ
ये ''संध्या'' है.
भजनों की आवाज;
टन-टन आती
घंटों की dhvni;
दूर आकाश में
बादलों के मध्यः
से चमकती नीलिमा;
मंद-मंद चलती
पवन का स्पर्श;
अपने घरों को
लौटते पक्षियों के
पंखों की fadfadahat;
समझे कुछ
ये ''संध्या'' है.
मंगलवार, 12 अक्टूबर 2010
sachin ko dohre shatak par badhai
मिसालें झुक के जिसके कदम चूम लेती हैं;
बहारें जिसके आने से खुशी से झूम लेती हैं;
करें तारीफ क्या उसकी? वो हर एक आंख का तारा; विनम्र; विजयी-'सचिन' को सलाम है हमारा.
बहारें जिसके आने से खुशी से झूम लेती हैं;
करें तारीफ क्या उसकी? वो हर एक आंख का तारा; विनम्र; विजयी-'सचिन' को सलाम है हमारा.
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
राम बनकर आते है; कृष्ण बनकर आते है;
******* ******* *********
पाप की कीचड में भी
पुण्य -कमल खिल उठता है;
मूक के मुख से मधुर
गायन का स्वर निकलता है;
दुष्ट के दुष्कर्मों का संहार करने आते हैं;
वो प्रभु संसार का दुःख मिटाने आते हैं.
****** ********** *******
उनके आगमन से
घट जाता तम का अहम् ;
ज्ञान ज्योति से चमक उठते
अज्ञान से अन्धें नयन में
आस के बुझे दीपक जगाने आते हैं;
वो प्रभु संसार का दुःख मिटाने आते हैं.
शिखा कौशिक
http://shikhakaushik666.blogspot.कॉम
राम बनकर आते है; कृष्ण बनकर आते है;
कभी मौहम्मद;नानक; ईसा बनकर आते हैं;
वो प्रभु संसार का दुःख मिटाने आते हैं.******* ******* *********
पाप की कीचड में भी
पुण्य -कमल खिल उठता है;
मूक के मुख से मधुर
गायन का स्वर निकलता है;
दुष्ट के दुष्कर्मों का संहार करने आते हैं;
वो प्रभु संसार का दुःख मिटाने आते हैं.
****** ********** *******
उनके आगमन से
घट जाता तम का अहम् ;
ज्ञान ज्योति से चमक उठते
अज्ञान से अन्धें नयन में
आस के बुझे दीपक जगाने आते हैं;
वो प्रभु संसार का दुःख मिटाने आते हैं.
शिखा कौशिक
http://shikhakaushik666.blogspot.कॉम
सोमवार, 11 अक्टूबर 2010
happy birthday to 'AMITABH BACHCHAN'
जन्मदिवस पर हमारा अभिवादन स्वीकार करें;
ईश्वर आपका जीवन नित नए आनंद से भरें;
क्या पाया- क्या खोया isko तो बिसार दें;
जो अधूरे हो स्वप्न उन्हें अब पूरा करें.
प्रशंसकों के ह्रदय -सिंहासन पर विराजमान रहें
आपकी प्रशंसा हमारी जिह्वा प्रतिपल करती रहे;
जय हो; ऐश्वर्य मिले ;यश को मिले विस्तार;
हमारा; अपनों का; सबका भरपूर मिले प्यार.
ईश्वर आपका जीवन नित नए आनंद से भरें;
क्या पाया- क्या खोया isko तो बिसार दें;
जो अधूरे हो स्वप्न उन्हें अब पूरा करें.
प्रशंसकों के ह्रदय -सिंहासन पर विराजमान रहें
आपकी प्रशंसा हमारी जिह्वा प्रतिपल करती रहे;
जय हो; ऐश्वर्य मिले ;यश को मिले विस्तार;
हमारा; अपनों का; सबका भरपूर मिले प्यार.
रविवार, 10 अक्टूबर 2010
poem-antar
चिलचिलाती धूप भी
कितनी शीतल लगती है
जब एयर- कंडिशनर कमरे
की बंद खिड़की के शीशे से
बाहर देखो.
जनवरी की रात भी
कितनी गरम लगती है
जब कमरों में हीटर
लगाकर लिहाफ में
let जाओ गद्दों
के पलंग par.antar
कितनी शीतल लगती है
जब एयर- कंडिशनर कमरे
की बंद खिड़की के शीशे से
बाहर देखो.
जनवरी की रात भी
कितनी गरम लगती है
जब कमरों में हीटर
लगाकर लिहाफ में
let जाओ गद्दों
के पलंग par.antar
poem-meri rachna
लिखूं 'कविता' नयी- नयी मैं;
बड़ी मुझे अभिलाषा है;
लेखन की 'पूजा' मैं करूँ;
बस कर्म मुझे ये भाता है.
*****************************
'प्रीति' प्रेम और अच्छे भाव से
कुछ भी जो भी रच दूंगी;
अपनी 'मनीषा' की 'छवि' से
सबके मन को रंग दूंगी.
*****************************
कोई 'ऋतु हो ; कोई समय हो;
बोले कोकिल या 'सारिका'
मेरी कविता-दीप'शिखा' से
'दीप्ति' हो यहाँ-वहां.
मैंने इस कविता में अपने साथ padhi अपनी कई सहेलियों का नाम जोड़ा है. यह भी एक तरीका है अपनी यादों को संजोकर रखने का.
बड़ी मुझे अभिलाषा है;
लेखन की 'पूजा' मैं करूँ;
बस कर्म मुझे ये भाता है.
*****************************
'प्रीति' प्रेम और अच्छे भाव से
कुछ भी जो भी रच दूंगी;
अपनी 'मनीषा' की 'छवि' से
सबके मन को रंग दूंगी.
*****************************
कोई 'ऋतु हो ; कोई समय हो;
बोले कोकिल या 'सारिका'
मेरी कविता-दीप'शिखा' से
'दीप्ति' हो यहाँ-वहां.
मैंने इस कविता में अपने साथ padhi अपनी कई सहेलियों का नाम जोड़ा है. यह भी एक तरीका है अपनी यादों को संजोकर रखने का.
poem-jindgee se pyar kar;
मत बहाने बना
अपनी akarmneyta के लिए ;
जो दोष हैं तुझमें
बेझिझक उन्हें स्वीकार कर;
जिन्दगी से प्यार कर.
गिर गया तो क्या हुआ
गिरकर सम्भलते हैं सभी;
एक नया अध्याय खोल
हारी बाजी जीतकर;
जिन्दगी से प्यार कर.
मैं नहीं कुछ भी;
नहीं कर सकता कुछ भी अब कभी;
इस तरह न बैठकर
मौत का इंतजार कर;
जिन्दगी से प्यार कर.
अपनी akarmneyta के लिए ;
जो दोष हैं तुझमें
बेझिझक उन्हें स्वीकार कर;
जिन्दगी से प्यार कर.
गिर गया तो क्या हुआ
गिरकर सम्भलते हैं सभी;
एक नया अध्याय खोल
हारी बाजी जीतकर;
जिन्दगी से प्यार कर.
मैं नहीं कुछ भी;
नहीं कर सकता कुछ भी अब कभी;
इस तरह न बैठकर
मौत का इंतजार कर;
जिन्दगी से प्यार कर.
शनिवार, 9 अक्टूबर 2010
poem--duvidha
अनंत इच्छाएं ;लालसाएं
असंख्य स्वप्न;सपनें
अभेद्य लक्ष्य;जीवन-सुख
पूर्ण karun तो कैसे?
निराशा की अँधेरी कोठरी
उसमे फंसी मेरी आशाएं;
मै अत्यंत विवश ;स्वतंत्र
करूँ तो कैसे?
असीम आकाश सम
मेरी आकांशाओं का विस्तार
उन्हें जीवन कक्ष में
समेटूं तो कैसे?
अज्ञानी; विवेकहीन
nirutsahi;sahasviheen
मृत-ह्रदय को संचालित
करूँ तो कैसे ?
नयनों में शून्यता
अश्रू-रहित;शुष्क
सरिता सम इन्हें
सरस करूँ तो कैसे?
गुलाबी pankhudyon से ओष्ट
किन्तु मुस्कान से रिक्त;
इन्हें उमंगित
करूँ तो कैसे?
असमंजस;किन्क्रत्वय्विमूद्ता
से युक्त मेरा मस्तिष्क
विचारों की दामिनी se
तरंगित करूँ तो कैसे?
रुके हुए पग
छालें है पड़े हुए;
कंटक युक्त जीवन
पथ पर आगे बढूँ
तो कैसे?
;
असंख्य स्वप्न;सपनें
अभेद्य लक्ष्य;जीवन-सुख
पूर्ण karun तो कैसे?
निराशा की अँधेरी कोठरी
उसमे फंसी मेरी आशाएं;
मै अत्यंत विवश ;स्वतंत्र
करूँ तो कैसे?
असीम आकाश सम
मेरी आकांशाओं का विस्तार
उन्हें जीवन कक्ष में
समेटूं तो कैसे?
अज्ञानी; विवेकहीन
nirutsahi;sahasviheen
मृत-ह्रदय को संचालित
करूँ तो कैसे ?
नयनों में शून्यता
अश्रू-रहित;शुष्क
सरिता सम इन्हें
सरस करूँ तो कैसे?
गुलाबी pankhudyon से ओष्ट
किन्तु मुस्कान से रिक्त;
इन्हें उमंगित
करूँ तो कैसे?
असमंजस;किन्क्रत्वय्विमूद्ता
से युक्त मेरा मस्तिष्क
विचारों की दामिनी se
तरंगित करूँ तो कैसे?
रुके हुए पग
छालें है पड़े हुए;
कंटक युक्त जीवन
पथ पर आगे बढूँ
तो कैसे?
;
गुरुवार, 7 अक्टूबर 2010
poem-asambhav kee talash
ichcha करो
उस चीज की
जो मिलनी
असंभव हो;
असंभव की तलाश में
'संभव' तो मिलेगा.
जो आदमी
पाकर धरती
को संतुष्ट
हो जाता तो
सूर्ये;चंद्रमा'
मंगल;इनके
विषय में कैसे
जान पता;
यही रास्ता है
हमारी तरक्की का;
इसे ही अपनाओं
इसी पर प्रतिपल
आगे बढते जाओ.
उस चीज की
जो मिलनी
असंभव हो;
असंभव की तलाश में
'संभव' तो मिलेगा.
जो आदमी
पाकर धरती
को संतुष्ट
हो जाता तो
सूर्ये;चंद्रमा'
मंगल;इनके
विषय में कैसे
जान पता;
यही रास्ता है
हमारी तरक्की का;
इसे ही अपनाओं
इसी पर प्रतिपल
आगे बढते जाओ.
poem-shanknaad
दूसरों की आँखों
से आंसू
बहते देखकर
अपने सारे
गम कितने
छोटे लगते हैं;
दूसरों को
सांत्वना देकर
ह्रदय में शांति
के 'शंखनाद'
होते है.
से आंसू
बहते देखकर
अपने सारे
गम कितने
छोटे लगते हैं;
दूसरों को
सांत्वना देकर
ह्रदय में शांति
के 'शंखनाद'
होते है.
poem-prathmikta
मेरी आरजू
कुछ कर दिखाने की;
मेरा जूनून
कुछ बन पाने का ;
मेरी ख्वाहिश
सब कुछ पाने की;
मेरे दिल में कशमकश
ऊँचा उठ जाने की;
मुझ में हलचल
उड़कर दिखाने की;
मुझमें हिम्मत
नवीन सर्जन करने की;
'मै मनुष्य हूँ'
ये हैं मेरी प्राथमिकताएं.
कुछ कर दिखाने की;
मेरा जूनून
कुछ बन पाने का ;
मेरी ख्वाहिश
सब कुछ पाने की;
मेरे दिल में कशमकश
ऊँचा उठ जाने की;
मुझ में हलचल
उड़कर दिखाने की;
मुझमें हिम्मत
नवीन सर्जन करने की;
'मै मनुष्य हूँ'
ये हैं मेरी प्राथमिकताएं.
बुधवार, 6 अक्टूबर 2010
poem-vishvas
जिन्दगी ठहरती नहीं है;
चलती रहती है;
कभी धीरे -धीरे
कभी तेज रफ़्तार से;
वो मूर्ख है
जो ये सोचता है क़ि
एक दिन ऐसा आएगा क़ि
जिन्दगी रूकेगी और
उसे सलाम करेगी;
ऐसा कुछ नहीं होता;
क्योकि जिन्दगी एक
भागता हुआ पहिया है;
जो जब रूकता है
तो गिर पड़ता है;
जिन्दगी का रूकना 'मौत ' है;
जो विद्वान है अथवा जिसे
थोडा भी ज्ञान है
वे करते हैं
जिन्दगी के साथ- साथ चलने
का प्रयास;
और कभी नहीं करते
इस पर 'विश्वास'
चलती रहती है;
कभी धीरे -धीरे
कभी तेज रफ़्तार से;
वो मूर्ख है
जो ये सोचता है क़ि
एक दिन ऐसा आएगा क़ि
जिन्दगी रूकेगी और
उसे सलाम करेगी;
ऐसा कुछ नहीं होता;
क्योकि जिन्दगी एक
भागता हुआ पहिया है;
जो जब रूकता है
तो गिर पड़ता है;
जिन्दगी का रूकना 'मौत ' है;
जो विद्वान है अथवा जिसे
थोडा भी ज्ञान है
वे करते हैं
जिन्दगी के साथ- साथ चलने
का प्रयास;
और कभी नहीं करते
इस पर 'विश्वास'
मंगलवार, 5 अक्टूबर 2010
poem-aatmshkti par vishvas
जीवन एक ऐसी पहेली है जिसके बारे में बात करना वे लोग ज्यादा पसंद करते हैं जिन्होंने कदम-कदम पर सफलता पाई हो.उनके पास बताने लायक काफी कुछ होता है. सामान्य व्यक्ति को तो असफलता का ही सामना करना पड़ता है.हम जैसे साधारण मनुष्यों की अनेक आकांक्षाय होती हैं. हम चाहते हैं क़ि गगन छू लें; पर हमारा भाग्य इसकी इजाजत नहीं देता.हम चाहकर भी अपने हर सपने को पूरा नहीं कर पाते .यदि मन की हर अभिलाषा पूरी हो जाया करती तो अभिलाषा भी साधारण हो जाती .हम चाहते है क़ि हमें कभी शोक ;दुःख ; भय का सामना न करना पड़े.हमारी इच्छाएं हमारे अनुसार पूरी होती जाएँ किन्तु ऐसा नहीं होता और हमारी आँख में आंसू छलक आते है. हम अपने भाग्य को कोसने लगते है.ठीक इसी समय निराशा हमे अपनी गिरफ्त में ले लेती है.इससे बाहर आने का केवल एक रास्ता है ---आत्मशक्ति पर विश्वास;------
राह कितनी भी कुटिल हो ;
हमें चलना है .
हार भी हो जाये तो भी
मुस्कुराना है;
ये जो जीवन मिला है
प्रभु की कृपा से;
इसे अब यूँ ही तो बिताना है.
रोक लेने है आंसू
दबा देना है दिल का दर्द;
हादसों के बीच से
इस तरह निकल आना है;
न मांगना कुछ
और न कुछ खोना है;
निराशा की चादर को
आशा -जल से भिगोना है;
रात कितनी भी बड़ी हो
'सवेरा तो होना है'.
राह कितनी भी कुटिल हो ;
हमें चलना है .
हार भी हो जाये तो भी
मुस्कुराना है;
ये जो जीवन मिला है
प्रभु की कृपा से;
इसे अब यूँ ही तो बिताना है.
रोक लेने है आंसू
दबा देना है दिल का दर्द;
हादसों के बीच से
इस तरह निकल आना है;
न मांगना कुछ
और न कुछ खोना है;
निराशा की चादर को
आशा -जल से भिगोना है;
रात कितनी भी बड़ी हो
'सवेरा तो होना है'.
सोमवार, 4 अक्टूबर 2010
poem-DOBARA -PRAYAS
अब मैं कभी नहीं रोउंगी ;
अब मैं कभी निराश न houngi ;
गम जितने देने हो दे दे;
अब मैं कभी उदास न houngi*****
कभी थमेंगे नहीं ये हाथ;
पग बढ़ते जायेंगे आगे ;
बाधाओं की आग में जलकर ;
भले मैं बन जाऊं एक राख;
अब कभी दिल न टूटेगा
दिल में न कोई टीस ही होगी.******
हर आशा को मन में रखकर;
प्रतिपल उसका ध्यान रखूंगी;
न घुटने दूंगी अभिलाषा;
संघर्षों से पूरी करुँगी;
और अगर पूरी न हुई तो
दोबारा प्रयास करुँगी.
अब मैं कभी निराश न होउंगी.
अब मैं कभी निराश न houngi ;
गम जितने देने हो दे दे;
अब मैं कभी उदास न houngi*****
कभी थमेंगे नहीं ये हाथ;
पग बढ़ते जायेंगे आगे ;
बाधाओं की आग में जलकर ;
भले मैं बन जाऊं एक राख;
अब कभी दिल न टूटेगा
दिल में न कोई टीस ही होगी.******
हर आशा को मन में रखकर;
प्रतिपल उसका ध्यान रखूंगी;
न घुटने दूंगी अभिलाषा;
संघर्षों से पूरी करुँगी;
और अगर पूरी न हुई तो
दोबारा प्रयास करुँगी.
अब मैं कभी निराश न होउंगी.
रविवार, 3 अक्टूबर 2010
poem-VIJAY
तकलीफें
कठिनाईयां;
मजबूरियां;
मायूसियाँ;
मुश्किलें;
सब आती हैं
जिन्दगी
me; लेकिन
जो इन्हें सहकर
इनपर विजय पता है;
उसे मिलता है;
आनंद
ख़ुशी
प्रसन्नता
मुस्कराहट
विजय.
कठिनाईयां;
मजबूरियां;
मायूसियाँ;
मुश्किलें;
सब आती हैं
जिन्दगी
me; लेकिन
जो इन्हें सहकर
इनपर विजय पता है;
उसे मिलता है;
आनंद
ख़ुशी
प्रसन्नता
मुस्कराहट
विजय.
शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010
poem-rajtilak
उषा काल
उदित hota dinkar;
neelambar lalima liye;
pakshiyon ka कलरव;
मंदिरों की घंटियों
की मधुर ध्वनि;
मनभावन वातावरण
शीतल पवन का स्पर्श
तन में तरंग;
मन में उमंग.
************************
madhayhan का समय
जीवन में गति;
चारों or गाडियों
का शोर;
उड़ता धूओं और धूल;
अशांति का साम्राज्य.
***************************
सयान्तिका का आगमन
लौटते घर को
क़दमों की आवाज;
शांत जल
टिमटिमाते तारों का समूह;
सुगन्धित समीर;
निशा - सुंदरी का
राजतिलक.
उदित hota dinkar;
neelambar lalima liye;
pakshiyon ka कलरव;
मंदिरों की घंटियों
की मधुर ध्वनि;
मनभावन वातावरण
शीतल पवन का स्पर्श
तन में तरंग;
मन में उमंग.
************************
madhayhan का समय
जीवन में गति;
चारों or गाडियों
का शोर;
उड़ता धूओं और धूल;
अशांति का साम्राज्य.
***************************
सयान्तिका का आगमन
लौटते घर को
क़दमों की आवाज;
शांत जल
टिमटिमाते तारों का समूह;
सुगन्धित समीर;
निशा - सुंदरी का
राजतिलक.
poem-insaniyat ka driya
किसी की आँख का आंसू
मेरी आँखों में आ छलके;
किसी की साँस थमते देख
मेरा दिल चले थम के;
किसी के जख्म की टीसों पे ;
मेरी रूह तड़प जाये;
किसी के पैर के छालों से
मेरी आह निकल जाये;
प्रभु ऐसे ही भावो से मेरे इस दिल को तुम भर दो;
मैं कतरा हूँ मुझे इंसानियत का दरिया तुम कर दो.
किसी का खून बहता देख
मेरा खून जम जाये;
किसी की चीख पर मेरे
कदम उस ओर बढ़ जाये;
किसी को देख कर भूखा
निवाला न निगल पाऊँ;
किसी मजबूर के हाथों की
मैं लाठी ही बन जाऊं;
प्रभु ऐसे ही भावों से मेरे इस दिल को तुम भर दो;
मैं कतरा हूँ मुझे इंसानियत का दरिया तुम कर दो ..
मेरी आँखों में आ छलके;
किसी की साँस थमते देख
मेरा दिल चले थम के;
किसी के जख्म की टीसों पे ;
मेरी रूह तड़प जाये;
किसी के पैर के छालों से
मेरी आह निकल जाये;
प्रभु ऐसे ही भावो से मेरे इस दिल को तुम भर दो;
मैं कतरा हूँ मुझे इंसानियत का दरिया तुम कर दो.
किसी का खून बहता देख
मेरा खून जम जाये;
किसी की चीख पर मेरे
कदम उस ओर बढ़ जाये;
किसी को देख कर भूखा
निवाला न निगल पाऊँ;
किसी मजबूर के हाथों की
मैं लाठी ही बन जाऊं;
प्रभु ऐसे ही भावों से मेरे इस दिल को तुम भर दो;
मैं कतरा हूँ मुझे इंसानियत का दरिया तुम कर दो ..
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