जो बिछड़ जाते हैं ..मेरी आवाज में
जो बिछड़ जाते हैं हमेशा के लिए
छोड़ जाते हैं बस यादों के दिए
जिनकी रौशनी में उनका साथ पाते हैं
वो नहीं आयेंगे ये भूल जाते हैं .
जिन्दगी कितने काँटों से है भरी
हर दिन कर रही हम सब से मसखरी
जो चला था घर से मुस्कुराकर के अभी
एक हादसा हुआ और आया न कभी
साथी राहों में ऐसे ही छूट जाते हैं
वो नहीं आयेंगे ये भूल जाते हैं .
रोज सुबह होती और शाम ढलती है
जिन्दगी की यू ही रफ़्तार चलती है
वो सुबह और शाम कितनी जालिम है
जब किसी अपने की साँस थमती है
हम ग़मों की आग में जिन्दा जल जाते हैं .
वो नहीं आयेंगे ये भूल जाते हैं .
शिखा कौशिक
2 टिप्पणियां:
कहाँ रुकती है ज़िन्दगी सही कहा.....
bahut marmik abhivyakti.
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