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मंगलवार, 17 जुलाई 2012

बेटा मस्ती ...बेटी एक जबरदस्ती है


बेटा  मस्ती  ...बेटी  एक  जबरदस्ती  है 

मंहगाई  के   दौर  में भी  कितनी  सस्ती  है ;
जान  बेटियों  की  सब्जी  से भी सस्ती है .
कोख  में आई  कन्या इसको क़त्ल करा   दो ;
जन्म दिया  तो  फाँस गले में आ फंसती है .
क़त्ल किया  कन्या का  इसने ..उसने   ..सबने   ;
मैं कैसे रूक जाऊं  मेरी  क्या हस्ती  है ?
बेटी के  कारण  झुकते  हैं बाप  के  कंधे ;
इसी सोच   की   फांसी   बेटी को  लगती है .
''कन्या भ्रूण  बचाओ ''नारों   से क्या होता  ?
बेटा  मस्ती  ...बेटी  एक  जबरदस्ती  है .
                                                              क्या आप इन बातों  से  सहमत  हैं  ?.....
                                                                    शिखा  कौशिक 
                                                       [विख्यात ]

5 टिप्‍पणियां:

Sunil Kumar ने कहा…

सच्चाई से कही गयी बात अच्छी लगी

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 19/07/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

निर्मला कपिला ने कहा…

वाह शिखा एक एक शब्द समाज की सोच पर करारी चोट है।

Shalini kaushik ने कहा…

nirmala ji se poori tarah sahmat.sarthak v sahi kaha hai aapne
.समझें हम

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

गहरा कटाक्ष ... लेकिन न जाने क्यों फिर भी बेटियाँ मन में बसती हैं ॥