इतिहास में सबसे दुखद सिया-राम का वियोग !
वन को चली जब जानकी ;
श्रीराम हो गए विह्वल ,
उर में मची उथल -पुथल ;
हुए कमल नयन सजल .
मन में उठी एक हूक सी ;
कैसे सिया को रोक लूँ ?
सीता है स्वाभिमानिनी ;
कैसे उसे लज्जित करूं ?
नैनों सम्मुख अनायास ही
शिव- धनुष- भंग झांकी सजी ,
वरमाला ले आती हुई
सुन्दर सुकोमल सिया दिखी .
छूने को ज्यों ही आगे बढे ;
भ्रम टूटा एक ठोकर लगी ,
फिर दौड़कर लक्ष्मण ने
थामा ,काल की अदभुत गति .
सीता खड़ी देखे उन्हें ;
कैसा विचित्र संयोग है !
पहले मिलन फिर विरह ;
फिर फिर मिलन वियोग है .
जाउंगी छोड़ प्राण मैं ;
यही आपके चरणों में अब ,
बस है निशानी गर्भ में
ये ही मेरी संपत्ति सब .
महलों के सुख सब छोड़कर ;
सम्मान रक्षा हित चली
अब आप धीरज बांध लें ;
देव की इच्छा बली .
संवाद नैनों से हुए;
सिया -राम दोनों मौन थे ,
ये क्षीर सागर प्रेमी युगल ,
क्या जाने जग ये कौन थे ?
है कैसा प्रस्तर देव उर ?
जो रचता ये दुर्योग है ,
इतिहास में सबसे दुखद ,
सिया-राम का वियोग है .
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