स्त्री की जय जयकार लिखो !
अब नख -शिख वर्णन छोड़ कवि ;
अब नख -शिख वर्णन छोड़ कवि ;
स्त्री मेधा पर छंद रचो ,
मांसल श्रृंगार अभिव्यक्ति छोड़ ;
स्त्री -उर की कुछ व्यथा लिखो .
अब नहीं नायिका वो नारी ;
जिसका अंग-अंग अति सुन्दर हो ,
ये युग सशक्त नारी का है ;
बढ़ता उसका सम्मान लिखो .
अब नयनों के तीर नहीं चलते ;
प्रज्ञा से करे पराजित है ;
मत अधर -लालिमा में उलझो
मन में उठता कुछ ज्वार लिखो .
अब नहीं विरह गीतों का युग ;
न विरह ताप में वो झुलसे ,
प्रतिबद्ध है ज्ञानार्जन को ;
बढ़ते क़दमों की चाल लिखो .
अब नहीं विलास - वस्तु नारी ;
न केवल कोमल देह मात्र ,
स्त्री ने पृथक अस्तित्व रचा ;
तुम उसकी जय जयकार लिखो .
शिखा कौशिक
[विख्यात ]
[सभी चित्र गूगल से साभार ]
5 टिप्पणियां:
well said
keep it up
जय हो शिखा जी! सुन्दर रचना।
कविता पसंद आई.ये ब्लॉगिंग की ही विशेषता हैँ कि यहाँ सरल शब्दों में ऐसी अर्थपूर्ण कविताएँ भी पढने को मिलती हैं नहीं तो मुझ जैसा पाठक तो अखबारों या पत्रिकाओं में छपी कविताएँ पढता ही नहीं.
वैसे तो नारी कभी भी कमजोर नहीं थी लेकिन उनकी सामाजिक स्थिति कमजोर बना दी गई थी.पर धीरे धीरे वह अपनी ताकत का एहसास करा रही हैं.एक समय आएगा जब उसे देखने का नजरिया बाकी आधी आबादी को भी बदलना ही पडेगा.
हे मातु, तुम्हारी जय होवे.
बहुत खूब ... नारी की तो सदा ही जयजयकार है तो वो तो लिख्नना ही है ... पर दिल में भी जयजयकार हो ऐसा लिखो ...
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