बेटा मस्ती ...बेटी एक जबरदस्ती है
मंहगाई के दौर में भी कितनी सस्ती है ;
जान बेटियों की सब्जी से भी सस्ती है .
कोख में आई कन्या इसको क़त्ल करा दो ;
जन्म दिया तो फाँस गले में आ फंसती है .
क़त्ल किया कन्या का इसने ..उसने ..सबने ;
मैं कैसे रूक जाऊं मेरी क्या हस्ती है ?
बेटी के कारण झुकते हैं बाप के कंधे ;
इसी सोच की फांसी बेटी को लगती है .
''कन्या भ्रूण बचाओ ''नारों से क्या होता ?
बेटा मस्ती ...बेटी एक जबरदस्ती है .
क्या आप इन बातों से सहमत हैं ?.....
शिखा कौशिक
[विख्यात ]
5 टिप्पणियां:
सच्चाई से कही गयी बात अच्छी लगी
कल 19/07/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
वाह शिखा एक एक शब्द समाज की सोच पर करारी चोट है।
nirmala ji se poori tarah sahmat.sarthak v sahi kaha hai aapne
.समझें हम
गहरा कटाक्ष ... लेकिन न जाने क्यों फिर भी बेटियाँ मन में बसती हैं ॥
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