ले कावड चल हरिद्वार चल ....
[google se sabhar ]
हरिद्वार से ला गंगा जल ,
गंगा जल शिवलिंग पर चढ़ाना ;
मन की मुरादें शिव से पाना .
ले कावड चल हरिद्वार चल ....
सब मासों में मास निराला ;
श्रावण मास है शिव को प्यारा ,
शिव महिमा जो इसमें गाता ;
मन चाहा वर शिव से पाता ,
शिव चरणों में शीश झुकाना .
मन की मुरादें शिव से पाना ;
ले कावड चल हरिद्वार चल !
शिव मेरा भोला भंडारी ;
हर लेता विपदाएं भारी ,
ये हैं आदिदेव कामारि ;
ये शंकर ये हैं त्रिपुरारी ,
बम भोले कह गगन गुंजाना .
मन की मुरादें शिव से पाना .
ले कावड चल हरिद्वार चल ....
जय गौरी शंकर की !
शिखा कौशिक
2 टिप्पणियां:
बिसम दाह तिहुँपुर के धारि कंठ नील भयो
धीर-गंभीर चंद्रमौलि वे दिगंबरा !
उनही के चाहे जन्म-मृत्यु के विधान भये
विगत मान आत्मरूप धारे विशंभरा
तिनही के माथ जल डारन के काज हेतु
साधन बनायो तुहै धन्य रे कँवरिया !
- प्रतिभा.
.सुन्दर प्रस्तुति.बधाई . अपराध तो अपराध है और कुछ नहीं ...
एक टिप्पणी भेजें