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रविवार, 19 दिसंबर 2010

आपकी ही दोस्त हूँ !

मुस्कुराने को कहूँ तो मुस्कुरा भी दीजिये ;
हाल जो पूछूं तुम्हारा ;गम सुना भी दीजिये ,
मैं नहीं उनमें से कोई ;
आये और आकर चल दिए ,
मैं जो आऊं घर तुम्हारे 
ठहराने  की जहमत कीजिये .
मैं नहीं पीती हूँ साकी ;
ये तुम्हे मालूम है ;
तो मुझे चाय क़ा प्याला  ;
शक्कर मिला कर दीजिये .
सोचते तो होगे तुम ;
कैसी ये बेशर्म है ?
रोज आ जाती है
अफ़साने सुनाने के लिए ;
''दोस्त आपकी ही हूँ ''
ये सोच कर सह लीजिये .
मुस्कुराने को कहूँ तो
मुस्कुरा भी दीजिये .

7 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

वाह!बहुत बढ़िया

Shalini kaushik ने कहा…

vah ! bhai dost ho to aisa .bahut badhiya !

PraTeek ने कहा…

Bahut khoob... :)

बेनामी ने कहा…

दोस्त आपकी ही हूँ ''
ये सोच कर सह लीजिये .
मुस्कुराने को कहूँ तो
मुस्कुरा भी दीजिये .bahut hi khoob likha hai.. dil mein utar gayi aaapki rachna.
congrats..

अनुपमा पाठक ने कहा…

बहुत खूब!
मुस्कराहट बिखेरती रचना...

Anita ने कहा…

आप खुद भी मुस्कुरा रही हैं न? इस मुस्कान को कभी न मिटने दीजिएगा!

naresh singh ने कहा…

मुस्कराहट आजकल गायब हो रही है जमाने से |आपकी रचना बहुत बढ़िया और उम्दा है अपने बलोग को थोड़ा और व्यवस्थित कीजियेगा |