मुस्कुराने को कहूँ तो मुस्कुरा भी दीजिये ;
हाल जो पूछूं तुम्हारा ;गम सुना भी दीजिये ,
मैं नहीं उनमें से कोई ;
आये और आकर चल दिए ,
मैं जो आऊं घर तुम्हारे
ठहराने की जहमत कीजिये .
मैं नहीं पीती हूँ साकी ;
ये तुम्हे मालूम है ;
तो मुझे चाय क़ा प्याला ;
शक्कर मिला कर दीजिये .
सोचते तो होगे तुम ;
कैसी ये बेशर्म है ?
रोज आ जाती है
अफ़साने सुनाने के लिए ;
''दोस्त आपकी ही हूँ ''
ये सोच कर सह लीजिये .
मुस्कुराने को कहूँ तो
मुस्कुरा भी दीजिये .
7 टिप्पणियां:
वाह!बहुत बढ़िया
vah ! bhai dost ho to aisa .bahut badhiya !
Bahut khoob... :)
दोस्त आपकी ही हूँ ''
ये सोच कर सह लीजिये .
मुस्कुराने को कहूँ तो
मुस्कुरा भी दीजिये .bahut hi khoob likha hai.. dil mein utar gayi aaapki rachna.
congrats..
बहुत खूब!
मुस्कराहट बिखेरती रचना...
आप खुद भी मुस्कुरा रही हैं न? इस मुस्कान को कभी न मिटने दीजिएगा!
मुस्कराहट आजकल गायब हो रही है जमाने से |आपकी रचना बहुत बढ़िया और उम्दा है अपने बलोग को थोड़ा और व्यवस्थित कीजियेगा |
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