फ़ॉलोअर

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

हर तरफ आवाज ये उठने लगी है ...

''सौप कर जिनपर हिफाजत मुल्क की ;
ले रहे थे साँस राहत की सभी ;
चलते थे जिनके कहे नक़्शे कदम पर ;
जिनका कहा हर लफ्ज तारीख था कभी ;
वो सियासत ही हमे ठगने   लगी है ;
हर तरफ आवाज ये उठने लगी है .
********************************************
है नहीं अब शौक खिदमत क़ा किसी को ;
हर कोई खिदमात क़ा आदी हुआ है  ;
लूटकर आवाम क़ा चैन- ओ  -अमन ;
वो बन गए आज जिन्दा बददुआ हैं ;
वो ही कातिल ,वो ही हमदर्द ,ये कैसी दिल्लगी है ;
हर तरफ आवाज ये उठने लगी .
**********************************************
कभी जो नजर उठते ही झुका देते थे;
हर एक बहन के लिए खून बहा देते थे ;
कोई फब्ती भी अगर कसता था ;
जहन्नुम  उसको  दिखा  देते थे ;
खुले बाजार पर अब अस्मतें लुटने लगी हैं ;
हर तरफ आवाज ये उठने लगी है .

7 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

बहुत सही कहा आपने.ये आज कि आवाज है और इसे बढ़ाना ही हम सबका लक्ष्य होना चाहिए.

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

ये आवाज़ बिलकुल सही उठने लगी है.सुधार के लिए ज़रूरी है कि समवेत स्वर गूंजें.

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

अब इसी क्रांतिकारी विचारों की जरूरत है, इनके भाग्य को लिख कर जो भेज रहे हैं वही तो ठगे जा रहे हैं.

Shikha Kaushik ने कहा…

aap sabhi ka hardik dhanywad .

बेनामी ने कहा…

theek likha hai aapne,,, aajkal ke haalaaat ko bahut achchhe se bataya hai...

अनुपमा पाठक ने कहा…

आवाज़ बुलंद रहे...
सुन्दर रचना!

naresh singh ने कहा…

वर्तमान की सच्ची तस्वीर है |