''सौप कर जिनपर हिफाजत मुल्क की ;
ले रहे थे साँस राहत की सभी ;
चलते थे जिनके कहे नक़्शे कदम पर ;
जिनका कहा हर लफ्ज तारीख था कभी ;
वो सियासत ही हमे ठगने लगी है ;
हर तरफ आवाज ये उठने लगी है .
********************************************
है नहीं अब शौक खिदमत क़ा किसी को ;
हर कोई खिदमात क़ा आदी हुआ है ;
लूटकर आवाम क़ा चैन- ओ -अमन ;
वो बन गए आज जिन्दा बददुआ हैं ;
वो ही कातिल ,वो ही हमदर्द ,ये कैसी दिल्लगी है ;
हर तरफ आवाज ये उठने लगी .
**********************************************
कभी जो नजर उठते ही झुका देते थे;
हर एक बहन के लिए खून बहा देते थे ;
कोई फब्ती भी अगर कसता था ;
जहन्नुम उसको दिखा देते थे ;
खुले बाजार पर अब अस्मतें लुटने लगी हैं ;
हर तरफ आवाज ये उठने लगी है .
7 टिप्पणियां:
बहुत सही कहा आपने.ये आज कि आवाज है और इसे बढ़ाना ही हम सबका लक्ष्य होना चाहिए.
ये आवाज़ बिलकुल सही उठने लगी है.सुधार के लिए ज़रूरी है कि समवेत स्वर गूंजें.
अब इसी क्रांतिकारी विचारों की जरूरत है, इनके भाग्य को लिख कर जो भेज रहे हैं वही तो ठगे जा रहे हैं.
aap sabhi ka hardik dhanywad .
theek likha hai aapne,,, aajkal ke haalaaat ko bahut achchhe se bataya hai...
आवाज़ बुलंद रहे...
सुन्दर रचना!
वर्तमान की सच्ची तस्वीर है |
एक टिप्पणी भेजें