'' हुज़ूर इस नाचीज़ की गुस्ताखी माफ़ हो ''
हुज़ूर इस नाचीज़ की गुस्ताखी माफ़ हो ,
आज मुंह खोलूँगी हर गुस्ताखी माफ़ हो !
दूँगी सबूत आपको पाकीज़गी का मैं ,
पर पहले करें साबित आप पाक़-साफ़ हो !
मुझ पर लगायें बंदिशें जितनी भी आप चाहें ,
खुद पर लगाये जाने के भी ना खिलाफ हो !
हुज़ूर इस नाचीज़ की गुस्ताखी माफ़ हो ,
आज मुंह खोलूँगी हर गुस्ताखी माफ़ हो !
दूँगी सबूत आपको पाकीज़गी का मैं ,
पर पहले करें साबित आप पाक़-साफ़ हो !
मुझ पर लगायें बंदिशें जितनी भी आप चाहें ,
खुद पर लगाये जाने के भी ना खिलाफ हो !
मुझको सिखाना इल्म लियाकत का शबोरोज़ ,
पर पहले याद इसका खुद अलिफ़-काफ़ हो !
खुद को खुदा बनना 'नूतन' का छोड़ दो ,
जल्द दूर आपकी जाबिर ये जाफ़ हो !
शिखा कौशिक 'नूतन'
6 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर भावों से सजी ग़ज़ल और यथार्थ को चित्रित करने वाली रचना के लिए आभार
बहुत बढ़िया ग़ज़लपोस्ट!
shbdon me aapne ek muslim mahila ke man ke bhavon ko bahut gahrai se utara hai bahut sundar abhivyakti.badhai shikha ji
samatv evm samantabad ki sundar prastuti
kuchh kuchh samjh to aya hai agarurdu ke shabdon ka arth mil jata to aur bhi achha lagata
भावना का सही इज़हार !
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