बदनाम जिन्दगी ...दर्दनाक मौत !
नैना ; भंवरी ,फिज़ा हो या
नैतिकता ; मर्यादा ; शुचिता ,
इन सबका दारोमदार है स्त्री पर
फिर कैसे पार करती है वो लक्ष्मण रेखा ?
अग्नि परीक्षा देते शायद
हर अगली ने पिछली सीता को नहीं देखा .
पुरुष सत्ताक समाज के बंधन
तोड़ने के लिए ;
बन जाती है पुरुष ही के हाथ का खिलौना ,
अपनी खूबसूरत जिन्दगी को क्यों
बना डालती है स्त्री घिनौना ?
नैना ; भंवरी ,फिज़ा हो या
हो कविता -मधुमिता ,
पुरुष के हाथ की कठपुतली बन
शीश पुरुष -चरणों में ही क्यों झुकता ?
महत्वाकांक्षाओं का गगन छूने के लिए
क्या जरूरी था पुरुष का सहारा ?
वो खेलता रहा तुमसे ..तुम ही हारी सदा
वो कभी ना हारा .
बदनाम जिंदगी ..दर्दनाक मौत
का रास्ता तुमने ही चुना ,
पर एक प्रश्न तो अनुत्तरित ही रहा ,
नारी की गरिमा गिराने का हक़ जब
पुरुष तक को नहीं फिर नारी
को किसने दिया ?
शिखा कौशिक
[विख्यात ]
2 टिप्पणियां:
सचेत और सजग रहना भी आवश्यक है ,आगे बढ़ने के साथ साथ .....
prabhavshali prastuti .blog jagat ke liye sangrahniy.aabhar
जन्म अष्टमी पर शुभकामनाएं |
अन्ना टीम: वहीँ नज़र आएगी
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