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मंगलवार, 24 जुलाई 2012

तन को चुपड़ना छोड़ सखी कर बुद्धि का श्रृंगार .

तन को चुपड़ना छोड़ सखी कर बुद्धि का श्रृंगार .
Beautiful Indian Brides
देह की चौखट के पार पड़ा है प्रज्ञा का संसार ;
तन को चुपड़ना छोड़ सखी कर बुद्धि का श्रृंगार .

कब तक उबटन से मल - मल कर निज देह को तुम  चमकाओगी ?
कुछ तर्क-वितर्क  करो  खुद से अबला कब तक कह्लोगी   ,
केशों की सज्जा छोड़ सखी मेधा को आज सँवार .
तन को चुपड़ना छोड़ ......

पैरों में रचे  महावर है ; हाथों में रचती  है मेहँदी ,
नयनों में कजरा लगता है ; माथे पर सजती  है बिंदी ,
सोलह सिंगार तो बहुत हुए अब  उठा  ज्ञान  तलवार  .
तन को चुपड़ना छोड़ ....

हाथों में कंगन;  कान  में झुमका;  गले में पहने हार  ;
पैर  में पायल;  कमर में तगड़ी ; कितने  अलंकार ?
ये कंचन -रजत के भूषण तज फौलादी करो विचार .
तन को चुपड़ना छोड़ सखी कर बुद्धि  का श्रृंगार  .
                                          शिखा कौशिक 
                                     [विख्यात ]

6 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

Arthpoorn Panktiyan

एस एम् मासूम ने कहा…

अच्छे विचार हैं|

Pallavi saxena ने कहा…

सारगर्भित एवं सार्थक भावभिव्यक्ति....

Shalini kaushik ने कहा…

एक गंभीर विचारणीय प्रस्तुति..हमें आप पर गर्व है कैप्टेन लक्ष्मी सहगल

निर्मला कपिला ने कहा…

सही कहा। सार्थक रचना।

vandana gupta ने कहा…

वाह अति उत्तम भाव संयोजन्।