कुदरत है बड़ी अनमोल
देख ले तू ये आँखें खोल ;
चल कोयल के जैसा बोल
कानों में तू रस दे घोल .
कुदरत है ........................
तितली -सा तू बन चंचल ;
सरिता सा तू कर कल-कल ;
बरखा जल सा बन निर्मल ;
घुमड़-घुमड़ कर बन बादल;
भौरा बन तू इत-उत डोल.
कुदरत है .............................
सूरज बन तू खूब चमक ;
चंदा सा तू बन मोहक ;
फूलों सा तू महक-महक ;
चिड़ियों जैसा चहक-चहक ;
बन के मयूर घूम जा गोल .
कुदरत है.........................
भोर की लाली होंठों पर सजा ;
रात का काजल आँखों में लगा ;
हरियाली- परिधान पहन ;
इन्द्रधनुष की चूडी चढ़ा ;
मौसम सी कर टाल-मटोल .
कुदरत है ................
शिखा कौशिक
5 टिप्पणियां:
प्रकृति से सीख देती सुन्दर रचना ..
bahut sundar prakritik vishleshan.aabhar
प्रकृति के बिम्ब लेकर नूतन संदेश देती सुंदर रचना.
bahut sundar rachana,sundar tartamya
सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार....
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