अफ़सोस
''मैं''
केवल एक देह नहीं
मुझमे भी प्राण हैं .
मैं नहीं भोग की वस्तु
मेरा भी स्वाभिमान .
मेरे नयन मात्र झील
से गहरे नहीं ;
इनमे गहराई है
पुरुष के अंतर्मन को
समझने की ,
मेरे होंठ मात्र फूल की
पंखुडियां नहीं ;ये खुलते
हैं जिह्वा जब बोलती है
भाषा उलझने की .
मेरा ह्रदय मोम सा
कोमल नहीं ;इसमें भावनाओं
का ज्वालामुखी है
धधकता हुआ ,
मेरे पास भी है मस्तिष्क
जिसमे है विचार व् तर्कों
का उपवन
महकता हुआ .
मेरा भी वजूद है
मैं नहीं केवल छाया
पर अफ़सोस पुरुष
इतना बुद्धिमान होकर भी
कभी ये समझ
नहीं पाया .
शिखा कौशिक
15 टिप्पणियां:
मेरा भी वजूद है
मैं नहीं केवल छाया
पर अफ़सोस पुरुष
इतना बुद्धिमान होकर भी
कभी ये समझ
नहीं पाया .
Bahut Badhiya....
मेरा भी वजूद है
मैं नहीं केवल छाया
पर अफ़सोस पुरुष
इतना बुद्धिमान होकर भी
कभी ये समझ
नहीं पाया .
sateek abhivyakti.
सकारात्मक सोच के साथ बिल्कुल नूतन चित्र खींचने के लिये आत्मिक बधाई.
बहुत बढ़िया सुकृति!
यानि रचना बहुत सुन्दर है!
अति सुन्दर शिखा जी, बधाई
नारी के मन की बात को सटीक शब्द दिए हैं ...अच्छी प्रस्तुति
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 07-07- 2011 को यहाँ भी है
नयी पुरानी हल चल में आज- प्रतीक्षारत नयनो में आशा अथाह है -
मेरा ह्रदय मोम सा कोमल नहीं ;इसमें भावनाओं का ज्वालामुखी है धधकता हुआ , मेरे पास भी है मस्तिष्क जिसमे है विचार व् तर्कों का उपवन महकता हुआ .
बहुत सुंदर ! भाव व भाषा का सुंदर समन्वय!
पर अफ़सोस पुरुष
इतना बुद्धिमान होकर भी
कभी ये समझ
नहीं पाया .
नारी भावना का सुन्दर चित्रण
सुन्दर रचना
सच कहा नारी को अपनी परिभाषा बदलने का समय आ गया है अपने लिये भी और समाज की नज़र में भी.
शिखा जी बहुत सुंदर शब्दों में आपने नारी मन के भाव लिखे हैं ..!मनमोहक चित्र भी आपकी कविता को सजीव कर रहा है ...
बहुत सुंदर रचना ...!!
मेरा ह्रदय मोम सा कोमल नहीं ;इसमें भावनाओं का ज्वालामुखी है धधकता हुआ , मेरे पास भी है मस्तिष्क जिसमे है विचार व् तर्कों का उपवन महकता हुआ.
बहुत सुंदर संवेदनशील भाव समेटे हैं शिखा कौशिक जी
मेरा ह्रदय मोम सा कोमल नहीं ;
इसमें भावनाओं का'''
ज्वालामुखी है धधकता हुआ ,
मेरे पास भी है मस्तिष्क
जिसमे है ..
विचार व् तर्कों का उपवन महकता हुआ...
बहुत सुन्दर नारीमन की भावनाओं को उद्घृत करती अति सुन्दर रचना...
मेरा भी वजूद है
मैं नहीं केवल छाया
पर अफ़सोस पुरुष
इतना बुद्धिमान होकर भी
कभी ये समझ
नहीं पाया .
भावनाओं का सुंदर वर्णन...
afsof, purush kyon samajh nahi pate,
vaise bhi jo bhi bat acchi ho use samjhne me der nahi karni chahiye
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