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बुधवार, 13 जुलाई 2011

कुदरत है अनमोल !

कुदरत  है अनमोल !

कुदरत है बड़ी अनमोल 
देख ले तू ये आँखें खोल ;
चल कोयल के जैसा बोल 
कानों में तू रस दे घोल .
कुदरत है ........................

तितली -सा तू बन चंचल ;
सरिता सा तू कर कल-कल ;
बरखा जल सा बन निर्मल ;
घुमड़-घुमड़ कर बन बादल;
भौरा बन तू इत-उत  डोल.
कुदरत है .............................

सूरज बन तू खूब चमक ; 
चंदा सा तू बन मोहक ;
फूलों सा तू महक-महक ;
चिड़ियों जैसा चहक-चहक ;
बन के मयूर घूम जा गोल .
कुदरत है.........................

भोर की लाली होंठों पर सजा  ;
रात का काजल आँखों में लगा ;
हरियाली- परिधान पहन ;
इन्द्रधनुष की चूडी चढ़ा ;
मौसम सी कर टाल-मटोल .
कुदरत है ................

                     शिखा कौशिक 

बुधवार, 4 मई 2011

खट्टी -मीठी यादें !

खट्टी -मीठी यादें !

टूटे  फूटे  वादे    ,कभी     ताने  और     फरियादें     ,
इनसे   ही   बन   जाती   हैं   खट्टी मीठी यादें .

फूलों   के   जैसे   हँसना   ,आँखों   से   मोती   झरना   ,
मरते   मरते   जीना   ,कभी    जीते   जीते   मरना   ,
ऐसे   जुड़ते   जाते   किस्से   ये   सीधे   सादे   .
इनसे   ही   बन   जाती   हैं   खट्टी मीठी यादें .
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गले लगाकर मिलना ,लड़ना और झगड़ना ,
ममता की बरसातें और कभी क्रोध में तपना ,
फिर भी जुड़ते जाते टूटे रिश्तों के धागे .
इनसे ही बन जाती हैं खट्टी मीठी यादें .
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कभी जेठ की गर्मी ,सावन की कभी फुहारें ,
कभी अमावस की रजनी ,कभी पूनम के उजियारे ,
कुदरत रोज बजाती नए सुरों में बाजें .
इनसे ही बन  जाती हैं खट्टी मीठी यादें .
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मेरी आवाज में -