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शनिवार, 25 जून 2011

साथ

साथ 
हर दुःख को हम सह जाते हैं;
आंसू अपने पी जाते हैं ;
जब तक मौत नहीं आती
जीवन का साथ निभाते हैं .

हर दिन आती हैं  बाधाएँ;
पैने कंटक सी ये चुभ जाएँ;
दुष्ट निराशा तेज ताप बन 
आशा-पुष्पों को मुरझाएं;
फिर भी मन में धीरज धरकर
पग-पग बढ़ते जाते हैं .
जब तक .......

पल-पल जिनके हित चिंतन में 
उषा-संध्या-निशा बीतती ;
वे अपने धोखा दे जाते 
घाव बड़े गहरे दे जाते ,
भ्रम में पड़कर ;स्वयं को छलकर 
नया तराना गाते हैं .
जब तक मौत .....

अपमान गरल पी जाते हैं;
कुछ कहने से कतराते हैं ;
झूठ के आगे नतमस्तक हो 
सच को आँख दिखाते हैं ;
आदर्शों का गला घोटकर 
हम कितना इतराते हैं !
जब तक ......
                       शिखा कौशिक 

7 टिप्‍पणियां:

आशुतोष की कलम ने कहा…

यही व्यथा कथा है आज के परिवेश की

Shalini kaushik ने कहा…

अपमान गरल पी जाते हैं; कुछ कहने से कतराते हैं ; झूठ के आगे नतमस्तक हो सच को आँख दिखाते हैं ; आदर्शों का गला घोटकर हम कितना इतराते हैं ! जब तक ....
bahut sundar bhaabhiyakti.badhai shikha ji.

vandana gupta ने कहा…

बेहद उम्दा भावाव्यक्ति।

Manish Khedawat ने कहा…

झूठ के आगे नतमस्तक हो
सच को आँख दिखाते हैं ;
आदर्शों का गला घोटकर
हम कितना इतराते हैं !

bahut sunder abhivayakti

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत बढ़िया रचना!
सभी शब्द बहुत खूबसूरत हैं!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सत्य को कहती अच्छी रचना ..

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

झूठ के आगे नतमस्तक हो
सच को आँख दिखाते हैं ;
आदर्शों का गला घोटकर
हम कितना इतराते हैं !

Samsamyik Bhav..... Sunder rachna