साथ
हर दुःख को हम सह जाते हैं;
आंसू अपने पी जाते हैं ;
जब तक मौत नहीं आती
जीवन का साथ निभाते हैं .
हर दिन आती हैं बाधाएँ;
पैने कंटक सी ये चुभ जाएँ;
दुष्ट निराशा तेज ताप बन
आशा-पुष्पों को मुरझाएं;
फिर भी मन में धीरज धरकर
पग-पग बढ़ते जाते हैं .
जब तक .......
पल-पल जिनके हित चिंतन में
उषा-संध्या-निशा बीतती ;
वे अपने धोखा दे जाते
घाव बड़े गहरे दे जाते ,
भ्रम में पड़कर ;स्वयं को छलकर
नया तराना गाते हैं .
जब तक मौत .....
अपमान गरल पी जाते हैं;
कुछ कहने से कतराते हैं ;
झूठ के आगे नतमस्तक हो
सच को आँख दिखाते हैं ;
आदर्शों का गला घोटकर
हम कितना इतराते हैं !
जब तक ......
शिखा कौशिक
7 टिप्पणियां:
यही व्यथा कथा है आज के परिवेश की
अपमान गरल पी जाते हैं; कुछ कहने से कतराते हैं ; झूठ के आगे नतमस्तक हो सच को आँख दिखाते हैं ; आदर्शों का गला घोटकर हम कितना इतराते हैं ! जब तक ....
bahut sundar bhaabhiyakti.badhai shikha ji.
बेहद उम्दा भावाव्यक्ति।
झूठ के आगे नतमस्तक हो
सच को आँख दिखाते हैं ;
आदर्शों का गला घोटकर
हम कितना इतराते हैं !
bahut sunder abhivayakti
बहुत बढ़िया रचना!
सभी शब्द बहुत खूबसूरत हैं!
सत्य को कहती अच्छी रचना ..
झूठ के आगे नतमस्तक हो
सच को आँख दिखाते हैं ;
आदर्शों का गला घोटकर
हम कितना इतराते हैं !
Samsamyik Bhav..... Sunder rachna
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