लड़की के जन्म पर ..
लड़की के जन्म पर
उदास क्यों हो जाते हैं
परिवारीजन ?
क्यों उड़ जाती है
रौनक चेहरों की
और क्यों हो जाती है
नए मेहमान के आने की ख़ुशी कम ?
शायद सबसे पहले मन
में आता है ये
हमसे जुदा होकर
चली जाएगी पराए घर ,
फिर एकाएक घेर लेती
है दहेज़ की फ़िक्र ;
याद आने लगती हैं
बहन बुआ ,पड़ोस की
पूनम-छवि के साथ घटी
अमानवीय घटनाएँ !
ससुराल के नाम पर
दिखने लगती है
काले पानी की सजा ;
फिर शायद ह्रदय में यह
भय भी आता है कि
हमारी बिटिया को भी
सहने होंगे समाज के
कठोर ताने -''सावधान
तुम एक लड़की हो ''
किशोरी बनते ही तुम एक देह
मात्र रह जाओगी ,
पास से गुजरता पुरुष
तुम पर कस सकता है तंज
''यू आर सेक्सी ''
इतने पर भी तुम गौर न करो तो
एक तरफ़ा प्यार के नाम पर
तुम्हे हासिल करना चाहेगा ,
और हासिल न कर सका तो
पराजय की आग में स्वयं
जलते हुए तुम पर तेजाब
फेंकने से भी नहीं हिचकिचाएगा ;
इतने भय तुम्हारे जन्म के साथ
ही जुड़ जाते हैं इसीलिए
शायद लड़की के जन्म पर
परिवारीजन
उदास हो जाते हैं .
शिखा कौशिक
12 टिप्पणियां:
satya kee abhivyakti.
अफ़सोस की कितने भय लड़की के जन्म के साथ ही जुड़ जाते हैं..... आखिर कब तक
गहन अभिव्यक्ति..... प्रभावित करती रचना
दुसरे घर में
बेटियों का दर्द
शायद उन्ही को सबसे कम सताता है
जिनका बेटियों के दर्द से गहरा नाता है
बदक़िस्मत हैं वे जो बेटी की महत्ता नहीं समझते.
बहुत सही बात कही आपने इस कविता में.काजल जी ने भी सही बात कही है.
सादर
ye hamaare samaaaj ki vidambanaa hai.ki kuritiyon ke karan aaj bhi hamaare samaaj main ladaki paida hone per pariwaarkhus nahi hota.bahut hi saarthak rachanaa.badhaai sweekaren.
आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
चुने हुए चिट्ठे ..आपके लिए नज़राना
शिखा जी आपने तो कड्वी सच्चाई बयां कर दी……………शानदार प्रस्तुति।
sundar or sargarbhit rachana badhai
sargarbhit prashn aur sundar rachana
सीधी, सपाट, खरी बात।
bohot achha likha hai....maine yeh aaj ke prabhat khabar newspaper mein padha tha........
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