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शनिवार, 28 मई 2011

मेरी बेटी

मेरी  बेटी                                               ''गूगल से साभार ''

फूल सी प्यारी है वो और मखमल सी नरम ,
है चपल तितली के जैसी ;रेशमी उसकी छुअन ,
दौड़ती खरगोश सी,कोयल के जैसी बोलती,
मीठी-मीठी बातों से कानों में अमृत घोलती ,
खिलखिलाती धूप-सम ;मुस्कुराती चांदनी,
बाँटती खुशियों के मोती ,क्रोध में है दामिनी ,
वो क्षमा है ,वो शिवा है,वो है काली-भैरवी , 
वो जया है ;वो है दुर्गा,वो है सारा-वाभ्रवी,
मुझसे ही जन्मी है वो ,मेरा ही तो रूप है ,
सृष्टि की संचालिका ,अनुपम है वो अनूप है .
                                         शिखा कौशिक



10 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

मुझसे ही जन्मी है वो ,मेरा ही तो रूप है ,
सृष्टि की संचालिका ,अनुपम है वो अनूप है

Bahut sunder....Hridaysparshi bhav

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

Fantastic and very touchy expressions.

Regards.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बधाई हो!
सुन्दर रचना है!

Richa P Madhwani ने कहा…

http://shayaridays.blogspot.com/

Anita ने कहा…

जितना सुंदर चित्र उससे भी प्यारी कविता !

तेजवानी गिरधर ने कहा…

अत्यन्त मार्मिक प्रस्तुति है

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

सुन्दर और बेहतरीन कविता

श्री हरिभक्त पंकज ने कहा…

वो क्षमा है ,वो शिवा है,वो है काली-भैरवी , वो जया है ;वो है दुर्गा,वो है सारा-वाभ्रवी,मुझसे ही जन्मी है वो ,मेरा ही तो रूप है ,सृष्टि की संचालिका ,अनुपम है वो अनूप है .
बहुत खुबसूरत लिखा है आपने।

श्री हरिभक्त पंकज ने कहा…

वो क्षमा है ,वो शिवा है,वो है काली-भैरवी , वो जया है ;वो है दुर्गा,वो है सारा-वाभ्रवी,मुझसे ही जन्मी है वो ,मेरा ही तो रूप है ,सृष्टि की संचालिका ,अनुपम है वो अनूप है .
बहुत खुबसूरत लिखा है आपने।