सबसे खुशनसीब
औलाद जो सदा माँ के करीब है ;
सारी दुनिया में वो ही खुशनसीब है .
जिसको परवाह नहीं माँ के सुकून की ;
शैतान का वो बंदा खुद अपना रकीब है .
दौलतें माँ की दुआओं की नहीं सहेजता
इंसान ज़माने में वो सबसे गरीब है .
जो लबों पे माँ के मुस्कान सजा दे
दिन रात उस बन्दे के दिल में मनती ईद है .
माँ जो खफा कभी हुई गम-ए -बीमार हो गए ;
माँ की दुआ की हर दवा इसमें मुफीद है .
है शुक्र उस खुदा का जिसने बनाई माँ !
मुबारक हरेक लम्हा जब उसकी होती दीद है .
शिखा कौशिक
7 टिप्पणियां:
प्यारी कविता ...माँ से बढ़कर कुछ नहीं...
बिलकुल सच बात कही आपने.
सादर
दौलतें माँ की दुआओं की नहीं सहेजता इंसान ज़माने में वो सबसे गरीब है .
बहुत सुन्दर कविता है आप की मगर कुछ पन्तियाँ अनकही भी हैं इस समाज में..
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माँ अब मैं बड़ा हो चुका हूँ…
शायद सूर्यपुत्र के सूतपुत्र होने का,
आधार चाहता हूँ…
माँ मैं कर्ण का वंशज,
अपना अधिकार चाहता हूँ..
हे माँ मुझको सूर्यपुत्र होने का,
अब दे दो अधिकार,
या एक बार फिर सूतपुत्र से,
कवच और कुंडल का,
कर लो व्यापार..
फिर भी तेरी महिमा की गाथा,
ये जग गाएगा बार बार..
माँ तेरी महिमा से कैसे कर सकता इंकार……
माँ के प्रति सुन्दर भावना से ओत प्रोत रचना ..अच्छी लगी
बहुत सुन्दर और भावप्रणव रचना!
bilkul satya bat kahi hai.
बहुत सुंदर.....कमाल की पंक्तियाँ ....
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