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बुधवार, 25 मई 2011

तू एक कतरा है .



मौत का खौफ उसे होता ही नहीं ;
जो बहुत हादसों से गुजरा है .

सुना रही थी वो दर्द अपना रोते-रोते
मगर दुनिया की नजर में वो एक मुजरा है .

परायों की बेरुखी के परवाह है किसे ?
यहाँ तो अपनों की बेवफाई का खतरा है .

जिन्दगी भर समझता रहा खुद को दरिया ;
आखिरी साँस में समझा कि तू एक कतरा है .

जलील करके हमें घर से निकालाजिसने 
कहें कैसे कि वो ''जिगर का टुकड़ा है '.

सच को सच कहने का हौसला न रहा ;
कैसी मजबूरियों ने आकर हमें जकड़ा है . 
                                             शिखा कौशिक 

10 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

सुना रही थी वो दर्द अपना रोते-रोते
गर दुनिया की नजर में वो एक मुजरा है .

ये पंक्तियाँ झकझोर देने वाली हैं.

सादर

Anita ने कहा…

वाह! हर शेर लाजवाब है, सभी एक से बढ़कर एक बधाई ! जीवन की सच्चाई को पूरी शिद्दत के साथ बयां किया है.

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

मौत का खौफ उसे होता ही नहीं ; जो बहुत हादसों से गुजरा है .
सुना रही थी वो दर्द अपना रोते-रोते मगर दुनिया की नजर में वो एक मुजरा है .
लाजावाब ..
बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है आपने.

Shalini kaushik ने कहा…

jhakjhor dene vali gazal .bahut khoob.

Kailash Sharma ने कहा…

जलील करके हमें घर से निकालाजिसने
कहें कैसे कि वो ''जिगर का टुकड़ा है '....

बहुत मर्मस्पर्शी...हरेक शेर दिल को छू जाता है..बहुत सुन्दर

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत बढ़िया गजल!

संजय भास्‍कर ने कहा…

जीवन की सच्चाई को बयां किया है.....

smshindi By Sonu ने कहा…

wah wah !!

smshindi By Sonu ने कहा…

Very nice post

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

जलील करके हमें घर से निकालाजिसने
कहें कैसे कि वो ''जिगर का टुकड़ा है '.

Sunder ...prabhavit karati panktiyan....