मौत का खौफ उसे होता ही नहीं ;
जो बहुत हादसों से गुजरा है .
सुना रही थी वो दर्द अपना रोते-रोते
मगर दुनिया की नजर में वो एक मुजरा है .
परायों की बेरुखी के परवाह है किसे ?
यहाँ तो अपनों की बेवफाई का खतरा है .
जिन्दगी भर समझता रहा खुद को दरिया ;
आखिरी साँस में समझा कि तू एक कतरा है .
जलील करके हमें घर से निकालाजिसने
कहें कैसे कि वो ''जिगर का टुकड़ा है '.
सच को सच कहने का हौसला न रहा ;
कैसी मजबूरियों ने आकर हमें जकड़ा है .
शिखा कौशिक
10 टिप्पणियां:
सुना रही थी वो दर्द अपना रोते-रोते
गर दुनिया की नजर में वो एक मुजरा है .
ये पंक्तियाँ झकझोर देने वाली हैं.
सादर
वाह! हर शेर लाजवाब है, सभी एक से बढ़कर एक बधाई ! जीवन की सच्चाई को पूरी शिद्दत के साथ बयां किया है.
मौत का खौफ उसे होता ही नहीं ; जो बहुत हादसों से गुजरा है .
सुना रही थी वो दर्द अपना रोते-रोते मगर दुनिया की नजर में वो एक मुजरा है .
लाजावाब ..
बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है आपने.
jhakjhor dene vali gazal .bahut khoob.
जलील करके हमें घर से निकालाजिसने
कहें कैसे कि वो ''जिगर का टुकड़ा है '....
बहुत मर्मस्पर्शी...हरेक शेर दिल को छू जाता है..बहुत सुन्दर
बहुत बढ़िया गजल!
जीवन की सच्चाई को बयां किया है.....
wah wah !!
Very nice post
जलील करके हमें घर से निकालाजिसने
कहें कैसे कि वो ''जिगर का टुकड़ा है '.
Sunder ...prabhavit karati panktiyan....
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