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मंगलवार, 11 जनवरी 2011

samay

कुछ छूटता -सा
दूर जाता हुआ
बार-बार याद आकर
रुलाता -सा;
क्या है?
मै नहीं जानती.
कुछ सरकता -सा
कुछ बिखरता -सा
कुछ फिसलता -सा
कुछ पलटता -सा;
क्या है?
मै नहीं जानती.
कंही ये 'समय' तो नहीं-
जो प्रत्येक पल के साथ
पीछे छूटता;
हर कदम के साथ
दूर होता;
जो बीत गया; उसे
पुन: पाने की आस में
रुलाता ;
धीरे-धीरे आगे बढता हुआ;
हमारे हाथों से निकलता हुआ;
कभी अच्छा ;कभी बुरा;
हाँ! ये वक़्त ही है-
मै हूँ इसे जानती!

3 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

bahut sundar bhavpoorn abhivyakti..

Anita ने कहा…

जिसे हम नहीं जानते वही बहुमूल्य है क्योंकि जीवन को दिशा वही देता है. समय को परखती सुंदर रचना !

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

अजब होते हैं समय के सारे रंग...... प्रभावी रचना