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गुरुवार, 27 जनवरी 2011

prathmikta

मेरी आरजू
कुछ कर दिखाने की;
मेरा जूनून
कुछ बन पाने का ;
मेरी ख्वाहिश
सब कुछ  पाने की;
मेरे दिल में कशमकश
ऊँचा उठ जाने की;
मुझ में हलचल
उड़कर दिखाने की;
मुझमें हिम्मत
नवीन सर्जन करने की;
'मै मनुष्य हूँ'
ये हैं मेरी प्राथमिकताएं.

3 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

manav man ki abhilashaon ki soochi hi aapne prastut kar di .bahut sundar bhavpoorn kavita...

Anita ने कहा…

मनुष्य होने पर भी यदि कुछ कर दिखाने का उत्साह नहीं हुआ और कुछ नया सृजन करने का जज्बा नहीं जगा तो जीवन अधूरा ही रहेगा !सुंदर कविता!

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

मनुष्य की यही सोच उसे आशावादी बनाये रखती है....