मैं सड़क हूँ ,मैं गवाह हूँ
आपके गम और ख़ुशी की ,
है नहीं कोई सगा पर
मैं सगी हूँ हर किसी की .
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मुझपे बिखरे रंग होली के ये देखो ;
मुझपे बिखरा खून ये दंगों क़ा देखो ;
मुझपे होकर जा रही बारात देखो ;
मुझपे ले जाते हुए ये अर्थी देखो ;
मैं गवाह आंसू की हूँ और कहकहों की ,
मैं सड़क हूँ ,मैं गवाह हूँ
आपके गम और ख़ुशी की .
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मंदिरों तक जा रहे मुझपे ही चलकर ;
मस्जिदों तक जा रहे मुझपे ही चलकर ;
मैं गरीबों को सुलाती थपकी देकर ;
मैं अमीरों को निभाती ठोकर सहकर ;
एक ही कीमत लगाती हूँ मैं हर इंसान की ,
मैं सड़क हूँ ;मैं गवाह हूँ आपके गम और ख़ुशी की .
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6 टिप्पणियां:
शिखा जी!एक एक शब्द में सच्चाई को बयां किया है आपने!
kavita kya hai ye to man ka khula chittha hai....
बहुत खूब..... एक हकीकत परक रचना ......
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।
सड़क का आत्मकथ्य सुंदरता से लिखा है!
सड़क के माध्यम से शिखाजी आपने उदार ह्रदय का वर्णन किया है | सडक ने कभी भेदभाव नहीं किया और उसे बनाने वाले के मनो में भेदभाव पैदा हो गया है |
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