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बुधवार, 23 जनवरी 2013

नहीं सहा है नहीं सहेंगें हिन्दू अपना अपमान !



हर हिन्दू देश भक्त है , हिन्दू से हिंदुस्तान
नहीं सहा है नहीं सहेंगें हिन्दू अपना अपमान !

सब धर्मों को आदर दो ये शिक्षा हमको मिलती ,
हर हिन्दू के दिल  में सद्भाव की ज्योति जगती ,
क्रिश्चन हो या मुस्लिम सबको देते सम्मान !
नहीं सहा है नहीं सहेंगें हिन्दू अपना अपमान !

 अन्याय के विरूद्ध सदा ही हिन्दू शस्त्र  उठाते ,
मासूमों की रक्षा कर अपना धर्म निभाते ,
भारत माँ की रक्षा हित उत्सुक हो देते प्राण !
 नहीं सहा है नहीं सहेंगें हिन्दू अपना अपमान !

आतंक मिटाने वालों को तुम आतंकी हो कहते ,
खोल किताबे ''हिन्दू'' का तुम मतलब तो पढ़ लेते ,
लंका दहन करें पापी की  हम हैं वो हनुमान !
 नहीं सहा है नहीं सहेंगें हिन्दू अपना अपमान !

बुद्ध रूप में हम ही देते अहिंसा का सन्देश ,
राम रूप में वध करते बाली हो या लंकेश ,
पाप का अंत करें बनकर दुर्वासा -परशुराम !
  नहीं सहा है नहीं सहेंगें हिन्दू अपना अपमान !

मातृभूमि के वंदन तक से जिनको है परहेज़ ,
उनसे तुलना करी हमारी -करो प्रकट अब खेद ,
माफ़ी अगर नहीं मांगी तो होगा फिर संग्राम !
 नहीं सहा है नहीं सहेंगें हिन्दू अपना अपमान !

          जय हिन्द !   जय भारत !  जय श्री राम !

                    शिखा कौशिक 'नूतन'



7 टिप्‍पणियां:

Anita ने कहा…

जोश भरी कविता..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…


आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 24-01-2013 को यहाँ भी है

....
बंद करके मैंने जुगनुओं को .... वो सीख चुकी है जीना ..... आज की हलचल में..... संगीता स्वरूप

.. ....संगीता स्वरूप

. .

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

जोश भरी रचना !
किसी को भी किसी का अपमान करने का हक़ नहीं है.....
~सादर!!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुंदर और ओज पूर्ण रचना ...

Gyanesh kumar varshney ने कहा…

सच यही लेखनी है कौशिक की
इसमें है पहिचान वही
जो डरती हो नही किसी से
जो दे युग को आवाज नयी
जो संग्रामों की प्रेमी हो
वो भारत को देगी भविष्य
सत्ता के साथ जाने वाले
खाते हैं यज्ञों का हविष्य
उनसे युग को कोई आश नही
जो भारत के साथ नही
सत्ता जिनको चैरी होवें
भारतीय जिन्हैं आतंकी हों
आतंकी जिन्हैं सज्जन दीखें
आती उनको क्यों लाज नही
क्यों वोटों की खातिर कांग्रेसी
बेच रहे खुद का इमान
भारत के साथ दुश्मनी कर
बना रहे खुद की पहिचान
जो जयचन्दों के वशज बन
आगे बढ़ने को आतुर हैं
बोटों की खातिर भारत को
बना रहै जो कातर है
इनको क्यों शर्म नही आती
तुम ही बतलाओ कौशिक
क्योंकि कौशिक जो सच्चा हो
बदले वह भारत का वह भौतिक
तुमको शायद याद होगे
धीर वीर वो विश्वामित्र
रावण के खिलाफ जिनने फूँका
पहले पहले ही महामंत्र
पर देख आज के कौशिक को
मैं सोचों में पड़ जाता हूँ
पर आज यहाँ पर आकर के
कुछ सन्तोष यहाँ मैं पाया हूँ
नाम रखे मैं ज्ञानेश का
वार्ष्णेय बना खुद आया हूँ
भगबान कृष्ण के कामों को
आगे करने में आया हूँ
उस विश्वामित्र ने राम किये
तू काम राम का कर कौशिक
इससे शायद फिर वदलेगी
भारत के नक्से की भौतिक




Gyanesh kumar varshney ने कहा…

सच आपकी अभिव्यक्ति से हिन्दु को कुछ साहस मिलेगा अपनी लेखनी को और धार दें राष्ट्र की नौका को आगे बढ़ाने के लिए आपकी लेखनी की आवश्यकता है आप राष्ट्र धर्म पर लिख सकती है हम राष्ट्रवादियों का सामूहिक व्लाग बनाना चाहते हैं राष्ट्र धर्म को
ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय के व्लागों की सूचि
http://rastradharm.blogspot.in/
http://ayurvedlight.blogspot.in/
http://ayurvedlight1.blogspot.in
http://debaicity.blogspot.com/

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

यह भाव हर नागरिक के हृदय से निकलें,जरूरी है ये अभिव्यक्ति।