आज जनकपुर स्तब्ध भया ; डोल गया विश्वास है ,
जब से जन जन को ज्ञात हुआ मिला सीता को वनवास है .
मिथिला के जन जन के मन में ये प्रश्न उठे बारी बारी ,
ये घटित हुई कैसे घटना सिया राम को प्राणों से प्यारी ,
ये कुटिल चाल सब दैव की ऐसा होता आभास है .
हैं आज जनक कितने व्याकुल पुत्री पर संकट भारी है ?
ये होनी है बलवान बड़ी अन्यायी अत्याचारी है ,
जीवन में शेष कुछ न रहा टूटी मन की सब आस है .
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3 टिप्पणियां:
हमेशा की तरह मन को छू लेने वाली सुंदर रचना के लिए आभार
.सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति शुभकामना देती ''शालिनी''मंगलकारी हो जन जन को .-2013
बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति..नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
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