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रविवार, 30 दिसंबर 2012

''ये दुनिया मर्दों की नहीं ''

 
''ये दुनिया मर्दों की है ''
कुंठिंत पुरुष-दंभ की ललकार 
पर स्त्री घुटने टेककर 
कैसे कर ले स्वीकार ?

जिस कोख में पला;जन्मा 
पाए जिससे  संस्कार 
उसी स्त्री की महत्ता ;गरिमा 
को कैसे रहा नकार ?

कभी नहीं माँगा;देती आई 
ममता,स्नेह ;प्रेम-दुलार 
उस नारी  को नीच मानना
बुद्धि  का अंधकार  

''अग्नि -परीक्षा ''को उत्सुक 
''सती ''की करता है जयकार !
फिर पुरुष कैसे कहता
स्त्री को नहीं ''अग्नि ''
देने का अधिकार ?

सेवा,समर्पण,शोषण 
बस इसकी स्त्री हक़दार ?
कृतघ्न पुरुष अब संभल जरा 
सुन नारी -मन चीत्कार 

आँख दिखाना ,धमकाना 
रख दे अपने हथियार  ! 
इनके  विरुद्ध खड़ी है नारी 
लेकर मेधा-तलवार 

खोलो अपनी सोच की गांठें
नारी शक्ति का अवतार 
नर-नारी के उचित मेल से 
सृष्टि  का विस्तार .
                            शिखा कौशिक 'नूतन '' 
               





5 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति भारत सरकार को देश व्यवस्थित करना होगा .

Aditi Poonam ने कहा…

बहुत सुंदर सार्थक रचना के लिए बधाई -आभार

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

सही कहा

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

समाज का चलन उल्टा है
सच से इसे बैर है।
आप सच कहेंगे तो ज़माना आपका दुश्मन हो जाएगा
जड़ों को पानी देकर यह शाख़ें कतरता है

अजय कुमार झा ने कहा…

हम पोस्टों को आंकते नहीं , बांटते भर हैं , सो आज भी बांटी हैं कुछ पोस्टें , एक आपकी भी है , लिंक पर चटका लगा दें आप पहुंच जाएंगे , आज की बुलेटिन पोस्ट पर