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गुरुवार, 8 मार्च 2012

माँ-बाप को ही दे दिया इतना बड़ा धोखा !



माँ-बाप जिन बच्चों को नाज़ों से पालते ;
होकर बड़े क्यों वे उन्हें घर से निकलते ?

बचपन में जिनसे पूछकर करते थे सभी काम ;
होकर बड़े उन्ही में कमियां निकालते !

लाचार हैं;बेबस हैं;किसी काम के नहीं  ;
कहकर ये बात जले पर नमक हो डालते !

अपने तो शौक करते हो शान  से पूरे ;
माँ-बाप के हर काम को कल पर टालते !

माँ-बाप को ही दे दिया इतना बड़ा धोखा ;
जो  उम्रभर  रहे  तुमको  सँभालते  !

                                  शिखा कौशिक 


 

5 टिप्‍पणियां:

Pallavi saxena ने कहा…

aaj ke zamaane ka sach ....sundar evam saarthak prastuti ....

Shalini kaushik ने कहा…

vastvikta ko bahut marmikta ke sath abhivyakt kiya hai.

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

nice.

dr.mahendrag ने कहा…

SACHHAIE KO BAYAN KARTI KHOOBSURAT RACHNA

Raravi ने कहा…

अपने मां बाप से दूर रहने को विवश जीवन के दर्द को फिर से कुदेर गयी आपकी मार्मिक सरल कविता